एक बगिया में लगे थे हजारों फूल
मुस्कराकर हवा के साथ रहे थे झूल
ले रहे थे वो सभी अपने यौवन का आनन्द
और मादक खुशबू फैलाने में थे मशगूल।
गुजरता है कवि "दीप" वहां से
और पास जाकर पूछता है फूल से
क्यों मुस्कराए जा रहे हो इतना
जब कल मिट्टी में ही है मिलना।
इससे पहले कि फूल कोई जवाब दे पाता
एक भ्रमर है उसके पास आता
उसके चारों ओर मधुर संगीत है गुनगुनाता
फूल की खुशबू है बटोरता और उड़ है जाता।
एक तितली उड़ती हुई है आती
और फूल पर है बैठ जाती
आनन्द उठाती फूल की ताज़गी का
फिर प्रसन्न हो उड़कर है चली जाती।
एक मधुमक्खी गाती झूमती है आती
आलिंगन फूल का है वो करती
अधरों पर लेकर वो फूल का रस
मदहोश होकर फिर है उड़ जाती।
एक बच्चा बगिया में है आता
नन्हें कोमल हाथों से फूल को है सहलाता
देखकर सुन्दरता रंगबिरंगे फूलों की
चेहरे पर मुस्कान लिए आनन्दित हो जाता।
फूल का अब "दीप" से कहना
हाँ मुझे कल मिट्टी में है मिल जाना
पर मेरी फ़ितरत है जाते हुए मुस्कराना
और दूसरों की ज़िंदगी में खुशियाँ भरते जाना।
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©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर(म.प्र.)