गुरु देता है शिष्यों को ज्ञान,
शिक्षक करता है शिक्षा प्रदान।
आज गुरू पूर्णिमा पर ,
दोनों को है मेरा प्रणाम।।
विद्यालय में शिक्षक होते हैं,
गुरुकुल में गुरु पढ़ाते हैं।
दोनों ही शिष्यों के पथ को,
अवलोकित करते जाते हैं।।
शिक्षक बहुत ही मेहनत से,
चमकीले मोती चुनता है।
देता है समाज को प्रतिभाएँ ,
तब देश तरक्की करता है।।
अपने सारे अनुभवों को,
समेटता है अपनी ओली में।
फिर पूरा ज्ञान है देता डाल,
प्रिय शिष्यों की झोली में।।
शिक्षक के पेशे को,
पैसों से तौलने की गलती न करना।
पड़ जाएँगे खज़ाने खाली,
क्योंकि शिक्षक की शिक्षा का है कोई मोल ना।।
अपनी आकांक्षाओं को ताक पर रखता है,
बच्चों के लिए दिन रात एक करता है।
बड़े परिश्रम से संस्कार के बीज बोता है,
तब कहीं राष्ट्रभक्त नागरिक तैयार होता है।।
शिक्षक ऊपर से नारियल की तरह सख़्त,
पर अंदर से बहुत नर्म होता है।
गीता में उपदेशित "मा फलेषु" वाला कर्म,
तथा विद्यार्थियों का प्रेरणास्त्रोत होता है।।
लाता है चाँद सितारे तोड़कर,
और डालता है शिष्यों की झोली में।
हँसाता है गुदगुदाता है ख़ूब,
और बोलता है शिष्यों की ही बोली में।।
शिक्षक स्वयं एक जिज्ञासा है,
न जाने कितनों की आशा है।
कुआँ है ज्ञान का बहुत गहरा वो,
पर खुद ही बहुत प्यासा है।।
शिक्षक एक प्रवाह है,
मँजिल नहीं वो राह है।
भरता है उजाले शिष्यों के जीवन में,
ऐसा अनवरत रौशन होने वाला वो "दीप" है।।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर