मेरे घर आती गौरैया,
फुदक फुदक जाती गौरैया।
इधर उधर वो दाना खाती,
आहट पाकर फुर्र उड़ जाती।।
चीं चीं कर वह हमें जगाती,
भोर हो गया हमें बताती।
हमारे लिए अलार्म बन जाती,
हमें देख वो खुश हो जाती।।
कुछ खाना दे दो हमें बताती,
पूंछ हिलाकर खाना खाती।।
चोंच में खाना वो भर ले जाती,
बच्चों को वो चुग्गा चुगाती।।
काले कंठ का चिड़ा कहलाता,
चिड़िया बहुत सुंदर दिखलाती।
बच्चों के लिए घोंसला बनाकर,
जीवन का वो पाठ पढ़ाती।।
बच्चे चीं चीं कर शोर मचाते,
बच्चे घोंसले के बाहर आ जाते।
बच्चे अब बड़े हो जाते,
और तब बच्चे फ़ुर्र उड़ जाते।।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर