शिक्षक तो है बहता पानी,
उसका नहीं है कोई सानी,
उसके ज्ञान की गंगा में बहकर,
अज्ञानी बन जाते हैं ज्ञानी।
शिक्षक सड़क हैं एक समान,
दोनों के हैं कर्तव्य महान,
इन दोनों की राह पर चलकर,
मँजिल हो जाती है आसान।
गुरु का है गोविंद सा मान,
शिक्षक तो है सूर्य समान,
दिवाकर दुनियाँ का तिमिर भगाता,
शिक्षक शिष्यों के तम को है मिटाता।
बिना भास्कर जीवन है सपना,
बिना वायु न जीवन है अपना,
बिना ज्ञान व्यक्तित्व अधूरा,
बिना गुरु न शिष्य है पूरा।
शिक्षक तो फलदार वृक्ष है,
फल के साथ है छाया देता,
"दीप" रहो सानिध्य में इनके,
ज्ञान से झोली वह भर देता।
बच्चों में बच्चा बन जाता,
बड़े बड़ों को सीख सिखाता,
चंद्रगुप्त का कौटिल्य वो बनकर,
एकछत्र है राज्य कराता।
शिक्षक के पास बहुमूल्य खजाना,
ज्ञान से भरा रहता हरदम,
चाहे जितना उसको बाँटो,
कभी नहीं होता है कम।
हम गर्वित हैं शिक्षक बनकर क्योंकि,
हम छोटे छोटे परिंदों को बाज बनाते हैं,
कच्ची मिट्टी से ताज बनाते हैं,
और डूबती कश्तियों को जहाज बनाते हैं।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर