प्रकृति प्रेमी देश में,
सर्प हैं शिव के गले का हार।
श्रावण शुक्ला पँचमी,
मनता नाग पंचमी का त्योहार।।
विष्णु की शैय्या हैं ये,
पृथ्वी के धारण हार।
जमुना में कृष्ण को छाया दिए,
जब पानी बरसे मूसलाधार।।
परीक्षित को तक्षक ने काटा,
जन्मेजय को तब गुस्सा आया।
समूल नाश हो सर्पों का,
ऐसा उसने यज्ञ करवाया।।
केवल दो नाग बच पाए,
कर्कोटक,तक्षक कहलाए।
ऋषि वासुकि की प्रेरणा से
मुनि आस्तीक ने प्राण बचाए।।
सर्प तो किसान मित्र हैं,
चूहे कीट पतंगे खाकर,
फसलों की रक्षा वो करते।
खाद्य श्रृंखला का अभिन्न अंग हैं,
प्रकृति में सहअस्तित्व बनाकर,
हम सब हैं उनका पूजन करते।।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर