अनुकूल घड़ी न वो मेरी होगी
मैं आऊँगा जब रात अंधेरी होगी
चहुँ ओर अधर्म का कीचड़ होगा
पापों की दुनियां बहुत घनेरी होगी।
जननी देवकी छोड़ मात यशोदा घर आऊँगा
वहाँ भ्राता बलराम का साथ मैं पाउँगा
मनसुख सा सखा साथ लेकर
मैं गोकुल में गायें चराऊंगा।
यमुना तट पर कदम्ब पेड़ पर
मैं मुरली मधुर बजाऊँगा
कालिया जैसा नाग नाथकर
जमुना जल शुद्ध बनाऊँगा।
छद्म पूतना का विनाश कर
गोपियों संग रास रचाऊंगा
मामा कंस का वध करके मैं
मथुरा को कष्ट से बचाऊँगा।
सबको छोड़कर धीर हृदय से
द्वारिका दूर बसाऊंगा
रानी रुक्मणि को संग में लेकर
मैं द्वारिकाधीश कहलाऊँगा।
महाभारत का युद्व रचाकर
अधर्मियों का विनाश कराऊँगा
दे गीता का ज्ञान यहाँ पर
मैं धर्म ध्वजा फहराउंगा।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर(म.प्र.)🇮🇳