हिन्दी के साहित्यकारों, लेखकों एवं कवियों को समर्पित एक कविता......
*वो हिन्दी के ध्वज को उठाये हुए हैं...*
वो हिन्दी की बिंदी सजाए हुए हैं
इसे अभिव्यक्ति की शक्ति बनाये हुए हैं
हिन्दी का हिन्दुस्तान बचाए हुए हैं
हिन्दी का जलवा बनाए हुए हैं
वो हिन्दी के ध्वज को उठाये हुए हैं...
गीतों के मोती बनाये हुए हैं
कविता की खेती लहलाये हुए हैं
गजलों की महफ़िल जमाये हुए हैं
सुरों के सरगम सजाए हुए हैं
वो हिन्दी के ध्वज को उठाये हुए हैं...
अलंकार से हिन्दी सजाए हुए हैं
संधियों से सुंदर शब्द बनाये हुए हैं
मात्राओं से वर्णों को सजाये हुए हैं
हलन्त का महत्व बनाये हुए हैं
वो हिन्दी के ध्वज को उठाये हुए हैं...
वो संज्ञा की गंगा बहाए हुए हैं
विशेषण के आभूषण पहनाए हुए हैं
समास से शब्द-संरचना बनाये हुए हैं
पर्यायवाची का भण्डार बनाये हुए हैं
वो हिन्दी के ध्वज को उठाये हुए हैं...
बोलियों को भाषा में समाए हुए हैं
मुहावरों से भाषा सजाए हुए हैं
वो हिन्दी को वानी बनाये हुए हैं
हिन्दी में जिन्दगानी समाए हुए हैं
वो हिन्दी के ध्वज को उठाये हुए हैं...
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर(म.प्र.)🇮🇳