शिक्षक कच्ची मिट्टी से
अनेकों सामाजिक किरदार गढ़ता है
कुम्हार की तरह लगाता है हाथ अन्दर से
और फिर ऊपर से हल्की थाप देता है।
कोई समाज बिना शिक्षक के
वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर की कल्पना नहीं कर सकता है
जब शिक्षक खुद पुस्तक रूपी समुद्र में गोता लगता है
तभी वह अपने शिष्यों को ज्ञान के मोती दे पाता है।
अपनी अधूरी उम्मीदों को वह
अपने बच्चों में देखता है
देकर संस्कार,साहस और ज्ञान
वह बच्चों को मंज़िल पर भेजता है।
शिक्षक समाज का शिल्पी होता है
बड़े करीने से किरदारों को ढालता है
अपनी डाँट रूपी छेनी-हथौड़ी से देता है आकार
और अपनी ज्ञान रूपी जान उसमें डालता है।
जब कोई शिक्षक हजारों बार
कक्षा में समय पर पहुँच कर मनोयोग से पढ़ाता है
तब ही जाकर कोई अंतरिक्ष यान
अपनी कक्षा में स्थापित हो पाता है।
शिक्षक ऊपर से बहुत सख्त
और अन्दर से बहुत नर्म होता है
हर शागिर्द उसका पहुँचे बुलन्दी पर
यही शिक्षक के मन का मर्म होता है।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर(म.प्र.) 🇮🇳