मैंने देखा है युवाओं को तैयारी करते,
स्वर्णिम सपने लिए गाँव से शहर जाते,
अपने भविष्य निर्माण के लिए ,
अपनों और घर से दूर हो जाते।
दिन रात पढ़ते हैं,
खूब मेहनत करते हैं,
रात रात भर किताबों में सर खपाते हैं,
और फिर निढाल होकर सो जाते हैं।
न खाने का होश,
न नहाने की चिंता,
जिनके नखरे थे खाने में कभी,
अब खा लेते हैं जो भी मिल जाता।
कोई बैंक की तैयारी करता,
कोई पुलिस और सेना के लिए दौड़ता,
कोई एस.एस.सी. की तैयारी करता,
कोई ऑफिस जॉब के लिए कम्प्यूटर सीखता।
कोई कहता मैं बनूँगा इंजीनियर,
कोई कहता मैं बनूँगा डॉक्टर,
कोई कहता मैं बनूँगा मास्टर,
तो कोई कहता मैं बनूँगा कलेक्टर।
सबकी अपनी अपनी सोच है,
सबके अपने अपने सपने हैं,
मेहनत तो सभी करते हैं,
परन्तु मँजिल पर कुछ ही पहुँचते हैं।
अरे! सरकारों,
जम कर भर्तियाँ निकालो,
कुछ बेरोजगारी कम हो सके,
और मेहनत करने वालों के सपने सच हो सकें।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर