आई होली आई होली,
मुँह पर रंग लगा गई साली,
रंग लगाकर वह तो भागी,
पीछे से मैंने दौड़ लगा दी।
मैं पीछे वह आगे भागी,
पीछे से मैंने टंगड़ी मारी,
बगल से बहती थी एक नाली,
उसमें गिर गई मेरी साली।
उठ पाती वो नाली में गिरकर,
मैं भी गिर गया उसके ऊपर,
झेंप गई थी मेरी साली,
सबने बजाई जोर से ताली।
शरमा के वो लाल हो गई,
बिना रंग के खिल गई थी होली,
वो दौड़ी दौड़ी घर को भागी,
यादगार बन गई वो होली।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर(म.प्र.)