हर घर लहराये तिरँगा,
मेरा मन भी डोला जाये।
कुर्बान हो गए वीर जो इस पर,
आज याद बहुत वो आये।।
आज उन्हीं कुर्बानी की दम पर,
हम स्वतन्त्र कहलाये।
शान से खड़ा तिरँगा हमारा,
लहर लहर लहराये।।
देखो इन्हीं तीन रँगों में खोकर,
आज हमें वो बतलायें।
अंतिम खून के कतरे तक लड़ना,
शान न इसकी जाने पाये।।
वीर सपूत की माता को जब,
अपने लाल की याद सताये।
आसमान में उड़ता तिरँगा,
देखकर गर्वित वो हो जाये।।
हर सीने में सजा तिरँगा,
उमँग यही भर जाये।
दुश्मन का सिर कलम मैं कर दूँ ,
या फिर कफ़न यही बन जाये।।
हर दिल में चिंगारी लेकर,
अब आगे बढ़ते जायें।
विजयी विश्व ये बने तिरँगा,
काम कुछ ऐसा हम कर जायें।।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर