कहानी शुरु होती है एक स्कूल के प्रिंसिपल रुम से जहां एक 10 साल की बच्ची को उसी के पेरेंटस के सामने प्रिंसिपल डांट रही है, “मिस्टर कुमार आपकी बेटी इतनी शरारती है, इसकी वजह से एक बच्चे का हाथ टूट गया, इसकी बदमाशियां कम
नहीं हुई तो इसे स्कूल से निकालना पड़ेगा, हम तो इसे समझा कर थक गये पर डांट का भी कोई असर नहीं होता, अपनी जिद के आगे वो किसी की नहीं सुनती, अब आप देख लीजिए ये लास्ट वार्निंग है”, प्रिंसिपल की ये कड़वी बातें और धमकी सुनकर उस बच्ची के पेरेंटस बाहर निकले, खामोशी स्कूल के गेट से कार तक साथ रही, पर यहां ज्यादा देर तक साथ दे न सकी। “काश्वी, हर बार तुम्हारी कंप्लेंट आती है, आखिर प्रोब्लम क्या है? क्यों नहीं तुम सुनती किसी की?”, मम्मी की डांट को अनसुना कर काश्वी कार की विंडो से बाहर देखती रही। काश्वी की मम्मी जितने गुस्से में थी, पापा उतने ही शांत, उन पर जैसे कोई असर ही नहीं हो रहा। ये देखकर काश्वी की मम्मी का पारा और हाई हो गया। वो लगातार बड़बड़ाती रही, कभी काश्वी की तो कभी उसके पापा की गलतियां गिनाती रही, काफी देर बोल कर आखिरकार वो चुप हो गई, और अंत में बस इतना कहा कि काश्वी को बिगाड़ने में पूरा हाथ उसके पापा का ही है। उधर काश्वी अपनी दुनिया में खोई सी, कुछ सोचती रही, उस पर किसी बात का कोई असर नहीं हुआ। मम्मी के तानों का तो वैसे भी काश्वी और उसके पापा पर कभी कोई असर नहीं होता। घर पहुंचकर काश्वी अपने रूम में चली गई लेकिन उसकी मम्मी का गुस्सा अभी कम नहीं हुआ, एक बार फिर उसके पापा को सुनना पड़ा कि काश्वी किसी की नहीं सुनती उस पर किसी बात का कोई असर नहीं होता और ये सब सिर्फ
उसके पापा की वजह से है। मम्मी की अपनी परेशानी है, वो फिर वही दोहरा रही है जो हमेशा कहती हैं, यही कि काश्वी की बड़ी बहन और छोटा भाई भी तो है, वो कभी इस तरह कोई बदमाशी नहीं करते, उनके स्कूल से कभी कोई कंप्लेंट नहीं आती, काश्वी को कुछ समझाने के लिये फिर उससे बात करने को मम्मी ने पापा को उकसाया, सब बात उसके पापा चुपचाप सुनते रहे जैसा वो हमेशा करते हैं, कुछ देर बाद वो काश्वी के रूम में गये, अंदर काश्वी अपनी कलर बुक में रंगों से खेल रही थी, उसके पापा ने उससे पूछा, “क्या हुआ था काश्वी, गलती तुम्हारी थी?” मासूम सी काश्वी ने कहा, “नहीं पापा”, “अच्छा तो हुआ क्या था?”, पापा ने फिर पूछा, काश्वी ने पूरी बात बतानी शुरु की, “वो जो चिराग हैं ना जिसका हाथ टूटा, उसने कहा लड़कियां पेड़ पर नहीं चढ़ सकती, तो मैंने कहा इसमें कौन सी बड़ी बात है चढ़ सकती है, उसने कहा ठीक चढ़ के दिखाओ, तो मैंने कहा ठीक है तुम भी चढ़ कर दिखाओ”, “और फिर क्या हुआ”, काश्वी के पापा ने पूछा काश्वी इस बार थोड़ा डरते हुए बोली, “फिर क्या मैं चढ़ गई”, उसने धीरे से कहा, “हममम”, मुस्कुराते हुए पापा ने कहा, “तो तुम पेड़ पर चढ़ी”, “हां”, अपनी शरारत भरी आवाज में काश्वी ने कहा, “अच्छा, इसके बारे में बाद में बात करेंगे पहले ये बात उस बच्चे को चोट कैसे लगी?”, पापा ने पूछा “अरे उसे कुछ आता नहीं, बस बातें करता रहता है, पेड़ पर मैं चढ़ गई और वो चढ़ नहीं पा रहा था, उसका पैर फिसल गया और वो गिर गया”, काश्वी ने बताया, “काश्वी क्या तुमने उसे धक्का दिया?”, पापा ने पूछा “नहीं, मैं तो ऊपर थी और वो तो चढ़ ही नहीं पाया था, वो खुद गिर गया”, काश्वी ने कहा “अच्छा ऐसा था तो तुम्हें क्यों डांटा टीचर ने?”, पापा ने पूछा“वहीं तो, मेरी गलती नहीं थी पर वो मुझे डांट रही थी कुछ सुना भी नहीं”, काश्वी ने कहा “ठीक है मैं बात करुंगा तुम्हारी टीचर से लेकिन एक बात हमेशा याद रखना, कोई कुछ भी कहे तो उसे करने के लिये एकदम तैयार नहीं हो जाना चाहिए, सोच समझ कर ही कुछ करना चाहिए, देखो उसकी एक बात से तुम निकल पड़ी पेड़ पर चढ़ने, ये भी नहीं सोचा कि वहां इतना उपर चढ़ना कितना डेंजरस हो सकता है, उसकी जगह तुम्हें भी चोट लग सकती थी”,
“पर, उसने ऐसा क्यों कहा कि लड़कियां पेड़ पर नहीं चढ़ सकती, उसे दिखाना तो था कि मैं कर सकती हूं”, बीच में ही काश्वी बोली
“देखो बेटा, किसी की बात का जवाब देना अच्छी बात है कोई गलत बोले तो उसे सही भी करना चाहिए लेकिन सिचुएशन के
हिसाब से, तैश में आकर नहीं, सोच समझकर, समझदारी से कुछ भी करो”, पापा ने काश्वी को समझाया
दस साल की काश्वी इस बात को समझने की कोशिश करने लगी। काश्वी अपने पापा के सबसे ज्यादा करीब है, उसकी बड़ी बहन और छोटा भाई दोनों से ज्यादा उसके पापा काश्वी से बात करते हैं और उसे समझाते हैं। मम्मी इस टेंशन में रहती है कि
काश्वी अपने दोनों भाई बहन से ज्यादा जिद्दी है, उसे जो करना है वो करके रहती है। उनका मानना है कि लड़कियों को इतना जिद्दी नहीं होना चाहिए, एडजस्ट करना आना चाहिए। खैर काश्वी अभी छोटी है ये सब उसकी समझ में कहां आता, वो अपनी मस्ती में शरारतें करती, बदमाशियां करती बड़ी होने लगी।