काश्वी के बड़े होने के सिलसिले में कई मोड़ आए, कभी वो खुद से सवाल करती, तो कभी कोई उससे, कब खुश होती, कब उदास उसे खुद भी नहीं पता चलता, दूसरी लड़कियों से कुछ अलग थी, उसके पापा उससे अक्सर पूछते थे कि उसे क्या पंसद है, कहीं बाहर जाते थे तो उसे कहते थे बताओ क्या लाऊ तुम्हारे लिए, पर काश्वी कोई जवाब नहीं देती, उसके पास सब पहले से ही था और जो नहीं था उसके बारे में उसे पता ही नहीं था।
शायद यही वजह थी कि वो सबकी लाडली थी क्योंकि कभी कुछ मांगती नहीं थी, जिद्दी नहीं थी वो बस अलग थी बाकी सबसे, सबकी तरह लड़ना नहीं जानती थी अपनी बात मनवाने के लिये, बस चुप हो जाती थी, उसे जब कुछ पंसद
नहीं होता था तो वहां से दूर चली जाती थी, उसकी अपनी एक दुनिया थी, जिसमें एंट्री बहुत कम लोगों की थी, बहुत कम लोग ही जान पाते थे कि वो क्या सोच रही है, यही वजह थी कि उसके दोस्त तो बहुत थे लेकिन वो दोस्त जिससे वो अपने दिल की बात कर सके वो बहुत कम थे। काश्वी अपना रास्ता ढूंढ रही थी, वो किस तरफ जाना चाहती है ये तय नहीं कर पाई
थी, पढ़ाई में अच्छी थी सब सोचते थे उसी में कुछ करेगी। काश्वी 14 साल की थी, जब वो अपने परिवार के साथ हॉलीडे पर मनाली गई, तीन दिन सबने खूब मस्ती की, आखिरी दिन जब सब पैकिंग करने लगे तो देखा काश्वी वहां नहीं है, उसके पापा उसे सब जगह ढूंढने लगे पर किसी को नहीं पता कि वो है कहां, ढूंढते ढूंढते काश्वी के पापा होटल की टेरिस पर पहुंचे, वहां काश्वी खड़ी मिली, चुपचाप पहाड़ों को देखती हुई।
उसे देखकर राहत की सांस लेते हुए पापा काश्वी के पास गये और पूछा, “यहां क्या कर रही हो सब ढूंढ रहे हैं”, काश्वी ने धीरे से कहा, “क्या हम यहां नहीं रह सकते, जाना जरुरी है?” पापा जान गये कि काश्वी को ये जगह पंसद है और वो यहां से जाना नहीं चाहती, पर जाना तो है ही, पापा ने काश्वी से कहा, “क्यों तुम यही रहना चाहती हो?”, “हां, क्या ऐसा हो सकता
है? यहां सब बहुत सुंदर है बस लगता है देखते रहो, ऐसे नजारे अपने शहर में नहीं मिलते, वहां तो बस सब भागते दौड़ते रहते हैं”, काश्वी ने कहा
काश्वी की ये बात सुनकर पापा कुछ सोचने लगे फिर कहा, “तुम यहां नहीं रह सकती पर ये नजारे तुम्हारे साथ जा सकते हैं, बोलो ले जाउगी इसे अपने साथ?” “हां, क्यों नहीं, बताओ कैसे?” काश्वी से एक्साइटेड होकर पूछा “बस एक मिनट रुको अभी आता हूं”, ये कहकर उसके पापा नीचे चले गये। काश्वी इंतजार करने लगी, उसे लग रहा था कि उसके पापा ने कहा है तो ये पोसिबल होगा ही, दो मिनट के बाद पापा वापस आये और कुछ दिया काश्वी को, काश्वी ने देखा वो एक कैमरा था, “काश्वी ने पूछा कैमरा क्यों?”
पापा ने कहा,“तुम हर जगह रुक नहीं सकती, दुनिया में बहुत सारी खूबसूरत चीजें हैं, जगह है, जो देखनी है, जिंदगी बहुत लंबी होती है बेटा, कई रास्ते आते हैं, कई मोड़ पर लगता है बस यही अच्छा है यही रुक जाओ पर ये संभव नहीं, चलते रहना पड़ता है, हर जगह रुक नहीं सकती तुम लेकिन उस जगह की खूबसूरती को कैमरे में कैद कर अपने साथ यादें बनाकर ले
जा सकती हो, इस समय को रोक नहीं सकती लेकिन इसकी खूबसूरती को सहेज कर हमेशा अपने साथ रख सकती हो”, काश्वी के चेहरे पर मुस्कान थी जैसे उसे कुछ कीमती मिल गया हो, वो जिसकी उसे जरुरत थी। उस दिन काश्वी को उसका नया दोस्त मिल गया उसका कैमरा, अब वो जहां जाती ये कैमरा उसके साथ होता, घर हो या बाहर, हर जगह जो उसे
पंसद होता उसे कैमरे में कैद कर अपने साथ ले जाती थी काश्वी, अब उसकी दुनिया बहुत कलरफुल थी क्योंकि इसमें फुर्सत के लम्हों में घर पर गुजारे पल भी थे, बर्थडे केक का स्वाद भी था और रास्तों के ट्रेफिक से लेकर सुबह सुबह पत्तों पर गिरी ओस भी थी, मुस्कुराते चेहरे भी थे, दुख में आंसू बहाती यादें भी थी। हर रोज जाने पहचाने रास्तों से गुजरती काश्वी उनमें
कुछ नया तलाशती, कैमरे का एंगल सेट करती नजर आती थी।
अपने कैमरे के साथ काश्वी काफी खुश थी, उसकी तस्वीरों की कलेक्शन में सब कुछ था, हर रंग, हर रुप, हर चीज की
तस्वीरें खींचना पंसद था उसे, जब भी बोर होती थी तो अपना कैमरा लेकर अपने कमरे की बालकनी में निकल जाती, नीचे खेलते बच्चों की तस्वीरें खींच कर उन्हें गिफ्ट करना उसका जैसे शौक हो गया था। काश्वी के पापा उसके इस शौक को और निखारना चाहते थे इसलिये एक फोटाग्राफी क्लास में एडमिशन भी करा दिया। कुछ साल बाद काश्वी एक प्रोफेशनल कैमरापर्सन बनने की राह पर थी, इसी बीच एक फोटो कंम्पीटीशन में हिस्सा लेने के लिये उसके पास एक कॉल आया।