काश्वी मुस्कुराते हुए उत्कर्ष के ऑफिस से बाहर निकली, उसे खुशी है कि निष्कर्ष अपने पापा के बारे में जो सोच रहा है वो गलत है और एक न एक दिन दोनों फिर साथ होंगे, ये कैसे होगा ये काश्वी को नहीं पता पर एक उम्मीद जरूर जगी है
काश्वी ने अपनी घड़ी देखी तो उसे ध्यान आया कि उसके निकलने का समय बस होने ही वाला है, वो फटाफट अपने
कमरे से सामान लेकर नीचे गैलरी में आ गई जहां सब अपने - अपने सामान के साथ पहले से मौजूद हैं, बाहर बस तैयार है और सब निकलने का इंतजार कर रहे हैं, काश्वी को देखकर निष्कर्ष उसके पास आ गया और पूछा, “कहां थी इतनी देर से सब ढूंढ रहे हैं”
“मैं सर से मिलने गई थी उन्होंने बुलाया था” काश्वी ने कहा
निष्कर्ष चुप हो गया बस इतना कहा “ओह.. ठीक है.. चलो सब तैयार है..”
निष्कर्ष सबका सामान बस में रखवाने लगा, एक - एक कर सब बस में सवार होने लगे, इतने में उसके एक असिसटेंट ने आकर कहा, सर आपका सामान बस में ही रखना है ना?
काश्वी ने ये सुना तो वो निष्कर्ष के पीछे आकर खड़ी हो गई, निष्कर्ष ने अपने असिस्टेंट को बस में ही सामान रखने को कहा
निष्कर्ष बात करके पीछे मुड़ा तो सामने काश्वी को खड़ा देखा, वो निष्कर्ष को देखकर मुस्कुरा रही थी
काश्वी को देखकर निष्कर्ष भी मुस्कुराने लगा और कहा, “हां मैं भी वापस चल रहा हूं”
ये सुनकर काश्वी खुश हो गई और जोर से बोलने लगी, “आप भी चल रहे हो, पहले क्यों नहीं बताया”
मुंह पर उंगली रखकर निष्कर्ष ने उसे धीरे बोलने का इशारा किया और कहा “चलो बस में बैठो मैं अभी आता हूं”
काश्वी की सारी टेंशन अब जैसे खत्म हो गई, निष्कर्ष को और उस जगह को छोड़ कर जाने की जो तकलीफ उसे हो रही थी वो एक पल में छू हो गई, अब वो आंख में नमी के साथ नहीं एक और नये सफर पर निकलने को बेताब है
सारे इंतजाम करके निष्कर्ष बस के अंदर आ गया और सबसे आगे बैठी काश्वी के साथ आकर बैठ गया
काश्वी की हंसी रुकने का नाम नहीं ले रही हालांकि उसकी आंखे ये सवाल कर रही है कि आखिर ये हुआ कैसे, बस चली, निष्कर्ष चुपचाप उसके साथ बैठा रहा जब काश्वी से रहा नहीं गया तो उससे पूछ ही लिया “मुझे क्यों नहीं
बताया आप भी चल रहे हो?”
निष्कर्ष ने काश्वी को देखा और कहा कल तक कोई प्लान नहीं था पर आज सुबह एक फोन आया तो वापस जा
रहा हूं
“ओह… फोन… हां ये फोन हमेशा राइट टाइम पर ही आता है, है ना?” काश्वी ने शरारत के साथ कहा
“अरे तुम्हें पता नहीं बहुत इंपोर्टेंट है ये कॉल” निष्कर्ष ने भी हंसते हुए जवाब दिया
“कोई बात नहीं, मुझे अच्छा लगा, अब थोड़े घंटे और आपके साथ रहने का मौका मिला है, मुझे अब तकलीफ
नहीं हो रही यहां से जाने में”
निष्कर्ष काश्वी को गौर से देखता रहा, कुछ नहीं कहा
दोनों की बातों का सिलसिला फिर शुरू हुआ, एक से दूसरी बात निकली, पहले दिन से लेकर आखिरी
दिन तक पूरी वर्कशॉप के एक्सपीरींयस को दोनों ने शेयर किया
काश्वी ने कई बार सोचा कि वो उत्कर्ष से हुई बात निष्कर्ष को बता दें पर ये सोचकर चुप रही कि निष्कर्ष इस वक्त शायद ये सब सुनना न चाहें
काश्वी को लगा कि इस वक्त निष्कर्ष शायद उत्कर्ष के इमोशन न समझ पाये और ये बात पता नहीं उसे अच्छी
लगे या न लगे, अभी इस समय काश्वी निष्कर्ष के साथ खुश है और उसे उत्कर्ष की बात भी याद आई कि निष्कर्ष बहुत दिन बाद इतना खुश लग रहा है तो वो उसकी खुशी को कम नहीं करना चाहती
काश्वी जानती है कि पापा नहीं पर मम्मी के बारे में बात करना निष्कर्ष को सबसे ज्यादा पंसद है तो उसने बातों बातों में उसकी मां के बारे में बात की
निष्कर्ष ने भी काश्वी को उसकी मां के बारे में बहुत कुछ बताया
“आपकी मॉम उदयपुर से थी न, वहां भी तो कितने पहाड़ है झील है, उसे तो राजस्थान का हिल स्टेशन कहते हैं न, मैंने बहुत सुना है वहां के बारे में” काश्वी ने पूछा
“हां, काश्वी उदयपुर बहुत सुंदर है मॉम बताती थी वहां के महाराणा प्रताप की कहानी, बचपन से यही सब सुनकर बड़ा हुआ, पता है नानाजी अब भी उसी घर में रहते हैं, जहां मॉम पैदा हुई, उनका पुश्तैनी घर भी किसी महल से कम नहीं था, ज्यादा जाना तो नहीं हुआ वहां पर जब भी गया एक नई याद लेकर लौटा, पता है पूरे उदयपुर में हर जगह महाराणा प्रताप की छाप है और कई दिलच्स्प कहानियां जुड़ी है उनसे, सबसे हैरान करने वाली उनकी चीजें हैं जिनका वेट कई सौ किलो होता था, महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो का था और उनके छाती का कवच 72 किलो का था। उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था”
“वाह बहुत बढ़िया, लगता है मुझे भी जाना पड़ेगा वहां” काश्वी ने कहा
“हां चलो न, मैं जल्दी ही जाउंगा, कुछ दिन पहले नानाजी का फोन भी आया था मां की कुछ चीजें हैं वहां वो लेकर आनी है उनके कमरे का सामान खाली किया तो बहुत कुछ मिला था, तुम भी चलना मेरे साथ वहां तुम्हारी फोटोग्राफी की अच्छी प्रैक्टिस हो जाएगी”
“हां जरूर, हम जरूर चलेंगे” काश्वी ने कहा
सफर लंबा है और रास्ते भर काश्वी और निष्कर्ष की बातों का सिलसिला चलता रहा, रात के 11 बजे उनकी बस दिल्ली पहुंची, बस पहले सीधे निष्कर्ष के ऑफिस पहुंची, जहां से सब अपने – अपने घर के लिये निकले, निष्कर्ष ने काश्वी को अपनी कार से घर छोड़ा, घर पहुंचने पर काश्वी ने निष्कर्ष से कहा, “चलो अंदर पापा से मिलवाती हूं”
निष्कर्ष मुस्कुराकर कहा “आज नहीं बहुत लेट हो गया है मैं आउंगा फिर”
“पक्का” काश्वी ने पूछा
“हां पक्का, जाओ अभी बहुत लेट हो गया है तुम थक गई होगी इतना लंबा सफर था” निष्कर्ष ने कहा
काश्वी अपने घर के अंदर चली गई और निष्कर्ष अपने घर के लिये निकल गया, एक महीने साथ रहने के बाद अब दोनों अलग हो गये हैं दोनों को पता नहीं कि फिर कब मिलेंगे लेकिन उम्मीद है कि जरूर मिलेंगे
काश्वी के वापस आने पर घर में सब बहुत खुश हुए, पूरी वर्कशॉप के बारे में सब कुछ पूछा, जब सबकी बातें खत्म हुई तो काश्वी अपने कमरे में चली गई, रात काफी हो गई पर आज भी उसे नींद नहीं आ रही, कुछ देर बाद वो बाहर बालकनी में आकर बैठ गई, काश्वी के पापा भी सोए नहीं, उन्होंने काश्वी को देखा तो उसके पास आकर बैठ गये
“क्या हुआ इतने लंबे सफर के बाद भी नींद नहीं आ रही?” पापा ने पूछा
“हां बस ऐसे ही” काश्वी ने जवाब दिया
“जगह बहुत अच्छी थी क्या, वापस आने का मन नहीं था?” पापा ने हंसकर पूछा
काश्वी मुस्कुराई और तभी उसके फोन पर एक मैसेज आया, काश्वी और पापा दोनों हैरान हो गये कि इतनी रात को कौन मैसेज कर रहा है, काश्वी ने झट से फोन उठाया फोन पर निष्कर्ष का नाम फ्लैश हुआ, काश्वी ने बिना
मैसेज पढ़े फोन एक किनारे पर रख दिया और पापा से बात करने लगी, पर पापा समझ गये कि कुछ तो गड़बड़ है,
“लगता है इस बार सिर्फ जगह नहीं कोई और भी पंसद आ गया है” पापा ने कहा
काश्वी शर्मा गई और हंसने लगी, “नहीं ऐसा कुछ नहीं” काश्वी ने कहा
“काश्वी मैंने तुम्हें झूठ बोलना तो कभी नहीं सिखाया, ठीक है तुम नहीं बताना चाहती तो मैं जाता हूं, तुम आराम से अपना मैसेज पढ़ो” पापा ने कहा और उठ कर जाने लगे
काश्वी ने पापा का हाथ पकड़कर रोक लिया और कहा, “बैठो ना बहुत दिन से आपसे बात नहीं की”
पापा वहीं काश्वी के पास बैठ गये, काश्वी ने पास पड़े उस लिफाफे को खोला जो उत्कर्ष ने उसे दिया था जिसमें उसके पूरे ग्रुप और निष्कर्ष की फोटो थी, उन फोटोग्राफ को दिखाते - दिखाते काश्वी ने निष्कर्ष और उत्कर्ष दोनों के
बारे में पापा को सब बताया
पापा ने काश्वी की पूरी बात सुनी और थोड़ा टेंशन में भी आ गये, उन्हें भी अजीब लगा कि कैसे एक दूसरे की इतनी परवाह करने वाले दो लोगों के बीच इतनी दूरी आ गई
काश्वी ने पापा को ये भी बताया कि उत्कर्ष ने उसे एक यूनिवसिर्टी में एडमिशन दिलाने का ऑफर दिया पर ये बात वो निष्कर्ष को नहीं बता पा रही और बिना उसे बताए जा भी नहीं सकती
इस पर पापा ने कहा कि अभी थोड़ा टाइम लो अच्छे से सोचो और उसके बाद फैसला करेंगे, दो घंटे तक दोनों की बातें चलती रही, पापा ने जाते - जाते काश्वी को कहा, “अब मैसेज पढ़ लेना वो इंतजार कर रहा होगा तुम्हारे जवाब का”