आज दो अक्टूबर है - राष्ट्रपिता महात्मा
गाँधी और जय जवान जय किसान का नारा देने वाले श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का
जन्मदिवस... गाँधी जी और शास्त्री जी दोनों ही मौन के समर्थक और साधक थे... बापू
के तो कहना था मौन एक ईश्वरीय अनुकम्पा है, उससे मुझे आन्तरिक आनन्द प्राप्त होता है...
वास्तव में सब कुछ मौन हो निस्तब्ध हो तो दूर की ध्वनियां भी सुन पड़ती हैं...
आत्मा के प्रति परमात्मतत्व के जो ध्वनि संदेश प्राप्त होते हैं उन्हें मन और वाणी
से मौन रहकर ही सुना जा सकता है... मौन का साधक अन्तर्मुखी हो जाता है और बहुत
शीघ्र दिव्य प्रकाश से प्रकाशित होता है... अन्यथा शब्दों का क्या है - जिह्वा
रूपी आसन से फिसलते ही हो जाते हैं अर्थहीन... आज बापू और शास्त्री जी के अवसर पर
यदि सप्ताह में एक बार कुछ पलों के लिए मौन व्रत का संकल्प लिया जाए तो इससे बड़ी
श्रद्धांजलि और क्या होगी... प्रस्तुत हैं इसी प्रकार के कुछ उलझे सुलझे से भाव
हमारी आज की रचना में... जिसका शीर्षक है आचरण मौन का... रचना सुनने के लिए कृपया
वीडियो देखें... कात्यायनी...