न जाने क्यों / आज फिर से तुम्हारी याद ने किया बेचैन मुझे
चाहती हूँ कुछ सुनना / कुछ सुनाना
पर कैसे / प्रश्न है यही सबसे कठिन
क्योंकि जा बैठी हो तुम दूर कहीं / बहुत दूर
हालाँकि जानती हूँ मैं, नहीं हो दूर तुम मुझसे
मैं जहाँ भी रहूँ / जैसे भी रहूँ
तुम जहाँ भी हो / जिस हाल में भी हो
तुम साथ हो मेरे हर पल / पूरा करती हुई मेरी हर ज़रूरत को
किसी स्वर्गीय देवी की तरह उठा हुआ है तुम्हारा हाथ
आशीर्वाद के लिए / हर पल
या किसी परी की तरह घुमाती हो कोई काल्पनिक छड़ी
और दे देती हो मुझे वो सब कुछ
जो मैंने चाहा हो / या न भी चाहा हो
अपनी ममता के ख़ज़ाने से / वार देती हो सब कुछ मुझ अकिंचन पर
क्योंकि तुम्हारा अंश हूँ मैं / पाला है तुमने मुझे अपने गर्भ में
गर्भ की वो समस्त पीड़ाएँ तुम्हें अनुभव हुईं / अपार सुख सी
सुख मातृत्व का / अपने शरीर से किसी को जन्म देने का
अहसास अपनेपन का / अपने अस्तित्व का / माध्यम से अपनी रचना के
देख मेरी हँसी / खिल उठती हँसी तुम्हारे चेहरे पर
और मुस्कुराने से मेरे / मुस्कुरा उठते तुम्हारे होंठ
धूल से मेरे तन की भर लेती थीं अपना आँचल / समझ कर पुष्पों का पराग
अपनी गोद के बिछौने पर / लोरी गाकर सुलातीं अँधेरी रातों में
डर जाती यदि कभी नींद में भी / तो सटा लेती सीने से अपने
और बाहों में भर चूमतीं मुझे बेतहाशा
गिर पड़ने पर / दौड़ कर उठा लेतीं / और पीटती ज़मीन को
देकर मीठा उलाहना “गिरा दिया मेरी फूल सी बच्ची को?”
लगती कहीं चोट / तो लगातीं आँसू का मरहम
छाती घटा दुःख की, निराशा की
या भर लेता उन्माद क्रोध का अपने आगोश में
भूल जाती मैं स्वयं को / अपने अस्तित्व को
तुम याद दिलातीं मुझे “कौन हूँ मैं”
आज न जाने क्यों याद आईं वही पुरानी बातें
जिन्हें भूली ही नहीं थी कभी / बस छिपी हुईं थीं मन के किसी कोने में
क्योंकि जानती हूँ मैं / नहीं हो दूर तुम मुझसे
तुम हो साथ मेरे सदा सदा / हर पल / पूरा करती हुई मेरी हर ज़रूरत को…