एतत्ते वदनं सौम्यम् लोचनत्रय भूषितम् ।
पातु नः सर्वभीतिभ्यः कात्यायिनी नमोsस्तुते ।।
देवी का छठा रूप कात्यायनी देवी का माना जाता है | इस रूप में भी इनके चार हाथ माने जाते हैं और माना जाता है कि इस रूप में भी ये शेर पर सवार हैं | इनके तीन हाथों में तलवार, ढाल और कमलपुष्प हैं तथा स्कन्दमाता की ही भांति एक हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में दिखाई देता है | देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिये देवी महर्षि कात्यायन के आश्रम पर प्रकट हुईं और महर्षि ने उन्हें अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया, इसीलिये “कात्यायनी” नाम से उनकी प्रसिद्धि हुई | इस प्रकार देवी का यह रूप पुत्री रूप है | यह रूप निश्छल पवित्र प्रेम का प्रतीक है, किन्तु कुछ भी अनुचित होता देखकर कभी भी भयंकर क्रोध में आ सकती हैं |
एक कथा के अनुसार एक वन में कत नाम के एक महर्षि थे उनका एक पुत्र था जिसका नाम कात्य रखा गया । इसके पश्चात कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन ने जन्म लिया । उनकी कोई सन्तान नहीं थी । मां भगवती को पुत्री के रूप में पाने की इच्छा रखते हुए उन्होंने कठोर तपस्या की । महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें पुत्री का वरदान दिया । कुछ समय बीतने के बाद राक्षस महिषासुर का अत्याचार अत्यधिक बढ़ गया । तब त्रिदेवों के तेज से एक कन्या ने जन्म लिया जिसने महिषासुर का वध किया | कात्यायन गोत्र में जन्म लेने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया । सरलता से अपने भक्तों की इच्छा पूरी करने वाली माँ कात्यायनी की उपासना का मन्त्र है:
चंद्र हासोज्जवलकरा शार्दूलवरवाहना |
कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानवघातिनि ||
विवाह की कामना करने वाली कन्याओं के लिए भी कात्यायनी देवी की पूजा अर्चना का विशेष महत्त्व माना गया है और उसके लिए मन्त्र के जाप का विधान है:
कात्यायनी महामाये सर्वयोगीश्वधीश्वरी
नंदगोपसुतं देवी पतिं में कुरु ते नमः