हम सभी आजकल नोट बन्दी पर चल रही पॉलिटिक्स में वैचारिक स्तर पर इतना उलझे हुए हैं कि दोस्तों को सुबह की राम-राम कहना भी भूल जाते हैं । मैं खुद भी इस बीमारी से अछूती नहीं हूँ और जाने अनजाने इसी जाल में फँसी हुई हूँ । सुबह जब मोबाइल चैक करते हैं तो व्हाट्सअप पर सिर्फ़ और सिर्फ़ यही चर्चा मिलती है – सैंकड़ों की तादाद में यही मैसेजेज… हर कोई जैसे बौरा गया है… मोदी जी के साथ हम भी हैं, और भारत बन्द जैसे आन्दोलनों के पक्ष में तो हम बिल्कुल भी नहीं हैं… अपनी बात मनवाने का ये क्या तरीक़ा हुआ कि आम आदमी को तक़लीफ़ पहुँचाई जाए ???
पर इन पॉलिटिशियन्स – चाहे वो किसी भी पार्टी का हो – का तो कोई इलाज़ है नहीं, इनकी तो रोज़ी रोटी इसी से चलती है कि “भोली भाली” जनता के सामने उल्टे सीधे तर्क प्रस्तुत करके उसे गुमराह करके अपनी राजनीति क रोटियाँ सेकी जाएँ… लेकिन ये भूल जाते हैं कि जनता इतनी भोली भी नहीं है, जागरूक है और अपने हितों की रक्षा करना जानती है…
तो भाई बहुत ही सोच विचार करने के बाद अपने राम ने तो आज फ़ैसला कर लिया कि कल से सुबह 8-8.30 से पहले मोबाइल को हाथ भी नहीं लगाएँगे, और फिर – सबसे पहले दोस्तों को राम राम – उसके बाद बाक़ी की दुनियादारी की बातें – तो सभी मित्रों को आज की मीठी मीठी धूप और चाय की चुस्कियों के साथ मीठा सा – सुप्रभात…