“आज हम जो कुछ भी हैं वो हमारी आज तक की सोच का परिणाम है | इसलिए अपनी सोच ऐसी बनानी चाहिए ताकि क्रोध न आए | क्योंकि हमें अपने क्रोध के लिए दण्ड नहीं मिलता, अपितु क्रोध के कारण दण्ड मिलता है | क्योंकि क्रोध तो एक ऐसा जलता हुआ कोयला है जो दूसरों पर फेंकेंगे तो पहले हमारा हाथ ही जलाएगा | यही कारण है कि हम कितने भी युद्धों में विजय प्राप्त कर लें, जब तक हम स्वयं को वश में नहीं कर सकते तब तक हम विजयी नहीं कहला सकते | इसलिए सर्वप्रथम तो अपने शब्दों पर ध्यान देना चाहिए | भले ही कम बोलें, लेकिन ऐसी वाणी बोलें जिससे प्रेम और शान्ति का सुगन्धित समीर प्रवाहित हो | साथ ही अहंकार, सन्देह और शक़ से व्यक्तिगत सम्बन्धों को आघात पहुँचता है | हम आध्यात्मिकता की कितनी भी बातें पढ़ लें या उन पर चर्चा कर लें, कितने भी मन्त्रों का जाप कर लें, लेकिन जब तक हम उनमें निहित गूढ़ भावनाओं को अपने जीवन का अंग नहीं बनाएँगे तब तक सब व्यर्थ है | इस सबके साथ ही हमें अपने अतीत के स्मरण और भविष्य की चिन्ताओं को भुलाकर अपना वर्तमान सुखद बनाने का प्रयास करना चाहिए | क्योंकि संसार दुखों का घर है, दुख का कारण वासनाएँ हैं, वासनाओं को मारने से दुख दूर होते हैं, वासनाओं को मारने के लिए मानव को अष्टमार्ग अपनाना चाहिये, अष्टमार्ग अर्थात – शुद्ध ज्ञान , शुद्ध संकल्प, शुद्ध वार्तालाप, शुद्ध कर्म, शुद्ध आचरण, शुद्ध प्रयत्न, शुद्ध स्मृति और शुद्ध समाधि” – इस प्रकार की जीवनोपयोगी और व्यावहारिक शिक्षाएँ देने वाले भगवान बुद्ध के जन्मदिवस (जो सिद्धार्थ गौतम के रूप में था), बुद्धत्व प्राप्ति (जिस दिन गीर्घ तपश्चर्या के बाद गौतम बुद्ध बने, और इस प्रकार बुद्धत्व प्राप्ति गौतम बुद्ध का नया जन्म था), और महानिर्वाण (मोक्ष) दिवस के रूप में मनाए जाने वाले पर्व बुद्ध पूर्णिमा की सभी को बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ | बुद्ध न केवल बौद्ध सम्प्रदाय के ही प्रवर्तक हैं अपितु भगवान विष्णु के नवम अवतार के रूप में भी भगवान बुद्ध की पूजा अर्चना की जाती है |
व्यक्ति के आत्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक विकास के लिए बुद्ध ने शुद्ध ज्ञान, शुद्ध संकल्प, शुद्ध वार्तालाप, शुद्ध कर्म, शुद्ध आचरण, शुद्ध प्रयत्न, शुद्ध स्मृति और शुद्ध समाधि के अष्टमार्ग के साथ साथ पाँच बातें और कही हैं:
- व्यक्ति को मनसा वाचा कर्मणा किसी भी जीव की हिंसा नहीं करनी चाहिए |
- किसी दूसरे की कोई भी वस्तु उस व्यक्ति से बिना पूछे लेने का अधिकार किसी को नहीं है – जो वस्तु कोई अपने आप प्रेम और सम्मान से दे बस उसी वस्तु को सहर्ष स्वीकार कर लेना चाहिए |
- किसी भी प्रकार के दुराचार अथवा व्यभिचार से बचना चाहिए |
- असत्य सम्भाषण उचित नहीं है |
- मादक पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए |
लेकिन इन पाँचों उपदेशों का यह अर्थ कदापि नहीं समझना चाहिए कि बुद्ध अपनी किसी परम्परा या अपने विचारों को व्यक्ति पर थोपना चाहते हैं | सदा से ही हमारे धर्म प्रवर्तक – चाहे वो किसी भी सम्प्रदाय से हों – व्यक्ति को एक ऐसा मार्ग दिखाना चाहते रहे हैं कि व्यक्ति का हर स्तर पर उत्थान हो सके, और अपने सांसारिक कर्तव्य कर्म करते हुए आत्मोत्थान के मार्ग पर अग्रसर होकर मोक्ष अर्थात पूर्ण ज्ञान की स्थिति को प्राप्त हो जाए | बुद्ध के भी इन समस्त उपदेशों का मर्म समझकर “क्या उचित है और क्या अनुचित” ये सब व्यक्ति को स्वयं अपने देश-काल-परिस्थिति के अनुसार पूर्ण सत्यता और ईमानदारी के साथ नियत करना होगा | हाँ, इतना अवश्य है कि बुद्ध के उपदेशों की आत्मा को यदि मानवमात्र ने आत्मसात कर लिया तो हर प्रकार के छल, कपट, युद्ध आदि से संसार को मुक्ति प्राप्त हो सकेगी और शान्त तथा आनन्दित हुआ मानव अध्यात्म मार्ग पर अग्रसर हो सकेगा – अध्यात्म मार्ग अर्थात स्वयं अपने भीतर झाँकने का मार्ग – स्वयं अपनी आत्मा से साक्षात्कार करने का मार्ग | और समस्त भारतीय दर्शनों की मूलभूत भावना यही है |
उदाहरण के लिए बुद्ध ने कायिक, वाचिक, मानसिक किसी भी प्रकार की हिंसा को अनुचित माना है | लेकिन जो लोग सेना में हैं – देश की सुरक्षा के लिए जो कृतसंकल्प हैं – आततायियों को नष्ट करने का उत्तरदायित्व जिनके कन्धों पर है – उनके लिए उस प्रकार की हिंसा ही उचित और कर्तव्य कर्म है, यदि वे पूर्ण रूप से अहिंसा का मार्ग अपना लेंगे तो न केवल वे कायर कहलाएँगे, बल्कि देश की सुरक्षा भी नहीं कर पाएँगे |
बुद्ध ने दुराचार और व्यभिचार से बचने की बात कही | आज जिस प्रकार से महिलाओं के साथ दुराचार और व्यभिचार की घटनाएँ सामने आ रही हैं – यदि अपने घरों में ही हम परिवार का केन्द्र बिन्दु – समाज की आधी आबादी – नारी शक्ति का सम्मान करना सीख जाएँ तो इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है | बुद्ध ने मदाक पदार्थों से बचने की बात कही – तो क्या केवल नशीली वस्तुओं का सेवन ही मादक पदार्थों का सेवन है ? दूसरों की चुगली करना, दूसरों के कार्यों में विघ्न डालना, आत्मतुष्टि के लिए अकारण ही दूसरों पर सन्देह करना, दूसरों को नीचा दिखाने का प्रयास करना, अकारण ही क्रोध करना – ऐसी अनेक बातें हैं जिनकी लत पड़ जाए तो कठिनाई से छूटती है – इस प्रकार के नशों का भी त्याग करने के लिए बुद्ध प्रेरणा देते हैं | हम सभी दोनों “कल” की चिन्ता करते रहते हैं और “आज” को लगभग भुला ही देते हैं – और बीते कल को भुलाने की तथा आने वाले कल को उत्तम बनाने की चेष्टा में अनेकों बार जाने अनजाने असत्य भाषण कर बैठते हैं – जो निश्चित रूप से अनुचित है | हाँ, यदि हमारे असत्य भाषण से कुछ अच्छा परिणाम प्राप्त होने वाला हो तो बात अलग है |
तो, देश काल और परिस्थिति के अनुसार व्यक्ति को अपने लिए उचित-अनुचित का निर्धारण करना चाहिए | हाँ, इतना प्रयास अवश्य करना चाहिए कि हमारे कर्म ऐसे हों कि जिन्हें करने के बाद हमारे मन में किसी प्रकार के अपराध बोध अथवा पश्चात्ताप की भावना न आने पाए | क्योंकि यदि हमारे मन में किसी बात के लिए अपराध बोध आ गया या किसी प्रकार के पश्चात्ताप की भावना आ गई तो हमें स्वयं से ही घृणा होने लगेगी और तब हम किस प्रकार सुखी रह सकते हैं ? स्वयं को दुखी करना भी एक प्रकार की हिंसा ही तो है | जो व्यक्ति स्वयं ही दुखी होगा वह दूसरे लोगों को सुख किस प्रकार पहुँचा सकता है ? जबकि बुद्ध के इन उपदेशों का मूलभूत उद्देश्य ही है मानव मात्र की प्रसन्नता – मानव मात्र का सुख…
युग के महान अवतार भगवान बुद्ध की महान शिक्षाओं को ध्यान में रखकर हम सब अपनी अपनी उन्नति के मार्ग पर इस प्रकार आगे बढ़ते जाएँ कि हमारे साथ दूसरों की भी उन्नति हो – इसी कामना के साथ एक बार फिर सभी को बुद्ध जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ…