पूज्य पिताश्री पं. यमुना प्रसाद कात्यायन (स्वर्गीय नहीं, क्योंकि वे सदा मेरे साथ हैं – पूर्ववत अपने नेहाशीषों की वर्षा करते), मेरे गुरु-सखा-भाई एकमात्र मेरे पिताजी… आज ही के दिन अपनी मीठी बातों से सबका मन बहलाते बहलाते रात्रि को परमतत्व में विलीन हुए थे…
मेरे जनक तुम्हारे बिन ये जग बेगाना सा लगता है ।
पर तुम सदा साथ हो मेरे, ऐसा भी एक भाव जगा है ।।
तुम थे मेरे मीत सखा, और तुम ही मेरे भाई बने थे ।
तुमसे ही मेरे जीवन में दीवाली के दीप सजे थे ।
और होली में तुमने ही तो रंगभरा फागुन गाया था ।
मेरे जनक तुम्हारे बिन ये जग बेगाना सा लगता है ।।
बचपन में बाहों के झूले में भर मीठी लोरी गाते |
तो सावन की मधु मल्हारों संग झोंटे दे हुलसाते थे ।
मन में मेरे हर पल नव आशाओं के तुम पुष्प खिलाते ।
मेरे जनक तुम्हारे बिन ये जग बेगाना सा लगता है ।।
तुम ही पथ दर्शक थे मेरे, निज उँगली थी मुझे थमाई ।
सर पर रखकर हाथ जगत की सारी रीत मुझे समझाई ।
अपनी मधु मुस्कानों से तुम पथ मेरा रोशन करते थे ।
मेरे जनक तुम्हारे बिन ये जग बेगाना सा लगता है ||
किन्तु नहीं, तुम दूर नहीं हो, स्मृतियों में सदा बसे हो ।
अपनी मधुरिम मुस्कानों से अब भी पथ रोशन करते हो ।
दूर सितारों में छिप कर निज आशीषों से हो नहलाते ।
सदा सदा तुम साथ हो मेरे, मन में ऐसा भाव जगा है….