आने वाली 16 अगस्त को हमारी संस्था WOW India और दिल्ली गायनाकोलोजिस्ट फोरम स्वतन्त्रता दिवस के उपलक्ष्य में कुछ कार्यक्रमों का आयोजन करने जा रही हैं | महिलाओं में रक्ताल्पता की जाँच कराके उसके निवारण का उपाय करना, सर्विकल केंसर के प्रति जागरूकता बढ़ाना, महिलाएँ अपना वार्षिक चेकअप कराएँ इस विषय में उन्हें जागरूक करना और वृक्षारोपण आदि दूसरी बहुत सी बातों के साथ साथ WOW India का विशेष प्रयास है “बेटी बचाओ / बेटी पढ़ाओं” कार्यक्रम को आगे बढ़ाना | हालाँकि लड़कों के अनुपात में लड़कियों की घटती दर को देखर कन्या भ्रूण हत्या न की जाए इसके प्रति काफ़ी जागरूकता लोगों में आई है – फिर भी कुछ जगहों पर अभी भी ये सब चोरी छिपे चल ही रहा है | इसी तरह आज ग़रीब से ग़रीब माता पिता भी चाहते हैं कि उनके बेटों की ही तरह उनकी बेटियाँ भी अच्छी तरह पढ़ लिखकर इतनी सशक्त हो जाएँ कि उन्हें किसी पर निर्भर न रहना पड़े | लेकिन फिर भी अभी इन दिशाओं में और कार्य किया जाना है, जो हो भी रहा है |
लेकिन प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि समाज में महिलाओं की ऐसी अवस्था हुई कैसे – वो भी भारत जैसे देश में – जहाँ कहा गया कि – यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: ? आज स्थिति यह है कि एक ओर तो जहाँ आज की नारी पुरुष के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर वो सारे कार्य कर रही है जिन पर पुरुष कभी अपना एकाधिकार समझता था – आज वह पुलिस की नौकरी में भी है, तो हवाई जहाज भी उड़ा रही है, तो स्पेस में भी जा रही है, तो वै ज्ञान िक भी है – और भी अनेकों कार्य जिनके विषय में पुरुष को भ्रम था कि स्त्री नही कर सकती क्योंकि वह स्वभावतः कोमल होती है, आज स्त्री वही सब कार्य पूर्ण कौशल के साथ कर रही है | तो दूसरी ओर बलात्कार जैसी धटनाएं भी आए दिन घटती रहती हैं | और इन्हीं सब बातों से डरकर कुछ परिवारों में लड़कियों पर तरह तरह की पाबन्दियाँ भी लगा दी जाती हैं – बजाए इसके कि लड़की को शैक्षिक, आर्थिक और शारीरिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में प्रयास किया जाए |
अगर हम अपने वैदिक और पौराणिक इतिहास पर दृष्टि डालें तो पता चलता है कि उस समय की नारी न केवल उच्च शिक्षा सम्पन्न हुआ करती थी और सभाओं में शास्त्रार्थ कर प्रकाण्ड पण्डितों की भी बोलती बन्द किया करती थी, अपितु युद्ध कला जैसी विधाओं में भी पारंगत होती थी | पर्दा प्रथा नहीं थी – क्योंकि परदे को उन्नति के मार्ग में अवरोध माना जाता था | इसके साथ साथ पिता की सम्पत्ति में उसका बराबरी का अधिकार होता था | पूर्ण रूप से स्वावलम्बी अथवा शस्त्र-शास्त्रादि में पारंगत होने के बाद ही उसका विवाह किया जाता था | पूरा अधिकार होता था उसे कि यदि उसका पति गलत है तो उसका त्याग कर दे | और इतना ही नहीं, आवश्यकता पड़ने पर स्त्री युद्ध भूमि में भी जाती थी और उसका युद्ध कौशल देखकर शत्रु भी दंग रह जाया करता था | और इसके लिए वैदिक अथवा पौराणिक सन्दर्भों का ही स्मरण करने की क्या आवश्यकता है ? झाँसी की रानी तो इसी युग की देन थीं | फिर क्यों आज स्थिति यह हो गई है कि नारी पर हुए अमानुषिक अत्याचारों की भर्त्सना तो होती है – लेकिन उस भर्त्सना को हमारा मीडिया अपनी टी आर पी बढ़ाने का माध्यम बना लेता है ? बहुत से बहुत कुछ स्वयंसेवी संगठन इस विषय पर गोष्ठियाँ आयोजित करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं | क्यों नहीं प्रयास किया जाता राष्ट्रीय स्तर पर, सामजिक स्तर पर और पारिवारिक स्तर पर कि महिलाओं के विषय में लोग अपनी सोच सकारात्मक बनाएँ ? जब तक स्त्री की विषय में सकारात्मक सोच नहीं अपनाएँगे तब तक उसका आत्मविश्वास कैसे बढ़ेगा ? आज हर लड़की – चाहे वो कितनी भी आयु की महिला ही क्यों न हो – को “सेल्फ डिफेंस” की ट्रेनिंग लेने की आवश्यकता है | भले ही इस ट्रेनिंग के बाद भी वो जमकर इस प्रकार के लोगों से लड़ न सके, पर उसकी पहल से प्रभावित होकर दूसरे लोग उसके बचाव के लिये निश्चित रूप से आगे आएँगे | और यदि नहीं भी आए तो भी कम से कम पुलिस के आने तक तो अपना बचाव कर ही सकती है | साथ ही इस तरह उसके आत्मविश्वास में भी वृद्धि होगी | साथ ही लड़की को अच्छे संस्कार दें, ताकि उसकी सोच अच्छी और परिपक्व हो | उसे अच्छी शिक्षा देकर स्वावलम्बी बनाएँ | उसके स्वास्थ्य का ध्यान रखें | क्योंकि एक स्वस्थ, शिक्षित तथा स्वावलम्बी स्त्री पर आसानी से कोई टेढ़ी नज़र नहीं डाल सकता | ऐसा करने से पहले दस बार सोचेगा | साथ ही अच्छी और परिपक्व सोच वाली, अच्छी तरह से पढ़ी लिखी गुणी, स्वस्थ, स्वावलम्बी तथा अपनी रक्षा करने में सक्षम लड़की ही अपने “आज और कल” के साथ साथ देश का भविष्य भी सँवार सकती है तथा ऐसी संतानों को जन्म दे सकती है जो अच्छे संस्कारों से युक्त हो |
इसी बात पर एक कहानी याद हो आती है, जो कभी बहुत पहले कहीं पढ़ी थी और बाद में अपने उपन्यास “नूपुरपाश” की भूमिका में भी उद्धृत की थी | कहानी कुछ इस तरह है कि एक बार वैशाली पर शत्रु का आक्रमण होने वाला था | वैशाली के लोग इकट्ठा होकर भगवान बुद्ध के दर्शनों के लिए गए और उनसे प्रश्न किया “भगवन, हमारे यहाँ शत्रु का हमला होने वाला है… कृपया बताएँ की क्या किया जाए ताकि हमारा जान माल का नुकसान भी कम हो और जीत भी हमारी हो…?” उत्तर में भगवान बुद्ध ने सबसे पहला प्रश्न उन लोगों से किया “आपके राज्य में कृषि की क्या स्थिति है ?”
“बहुत अच्छी भगवान, सिंचाई व्यवस्था बहुत अच्छी है, उत्तम किस्म के बीज किसानों को दिए जाते हैं, जिसके फलस्वरूप तीनों फसलें अपने निर्धारित समय पर और बहुत अच्छी होती हैं | किसानों से लगान नहीं के बराबर किया जाता है |”
“हूँ… और अर्थ व्यवस्था…?” भगवान ने आगे पूछा | “बिल्कुल सुदृढ़ भगवान… खेती अच्छी तो अर्थ व्यवस्था अपने आप मज़बूत रहेगी | राजकोष भरा हुआ है | देश में कोई भूखा नंगा नहीं है | हर किसी के पास व्यवसाय है – रोज़गार है | हर किसी के लिये शिक्षा की पूर्ण व्यवस्था है |” लोगों का उत्तर था | “और सैन्य व्यवस्था…?”
“भगवन, हमारी चतुरंगिणी सेना हर प्रकार के आधुनिक अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित है | शक्तिमान है तथा भली भाँति प्रशिक्षित भी है |” कुछ देर भगवान सोचते रहे, फिर अचानक ही पूछ बैठे “अच्छा एक बात और बताएँ, राज्य में महिलाओं की क्या स्थिति है?”
“हमारे यहाँ महिलाओं को न केवल पूर्ण स्वतन्त्रता है बल्कि पूरा पूरा सम्मान भी उन्हें प्राप्त है – फिर चाहे वह गणिका हो अथवा गृहस्थन…” लोगों का उत्तर था | तब भगवान बुद्ध ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा “फिर आप किसी प्रकार की चिंता मत कीजिए | कोई भी शत्रु आपका कुछ अनर्थ नहीं कर सकता | जिस देश का किसान, युवा और नारी स्वस्थ हों, प्रसन्नचित्त हों, शिक्षित हों, स्वावलम्बी हों, सम्मानित हों, कोई भी शत्रु उस देश का किसी प्रकार का अनर्थ कर ही नहीं सकता |”
आज नारेबाज़ी की अपेक्षा आवश्यकता है भगवान बुद्ध के इसी उपदेश का पालन करने की, अपनी लड़कियों और महिलाओं को शैक्षिक रूप से सक्षम बनाने की – ताकि उन्हें किसी पर आश्रित न होना पड़े – ऐसा करने से उनके आत्मविश्वास में वृद्धि होगी | साथ ही उन्हें शारीरिक रूप से इतना शक्तिशाली बनाने की भी आवश्यकता है कि कोई उन्हें ललचाई नज़रों से देखने का साहस भी न कर सके | साथ ही एक और आवश्यकता है – लड़कियों और महिलाओं पर हुए अत्याचारों को अतार्किक रूप से “ग्लैमरस न्यूज़” बनाकर लोगों के सामने परोसने की होड़ समाप्त की जाए… यदि ये सब करने में हम क़ामयाब रहे तभी हमारा “बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ” का अभियान पूर्ण होगा और एक स्वस्थ, सुन्दर और खुशहाल देश का सपना साकार हो सकेगा…
स्वतन्त्रता दिवस की सभी को शुभकामनाएँ… जयहिन्द… वन्दे मातरम्…