जन्म और मरण / कोई अन्तर नहीं दोनों में
छोड़कर एक ही भेद को
मृत्यु है जीवन की परिणति / फल जीवन का |
जीवन के मार्ग पर चलते हुए पहुँचते हैं जहाँ
वह लक्ष्य समापन ही तो है हमारे अध्यवसाय का
जहाँ प्राप्त करते हैं समस्त प्रयास अपनी पूर्णता को
हो जाती है मुक्ति समस्त कर्मों से
और इसीलिए मृत्यु है फल जीवन का |
जीवन है कथा का आरम्भ / तो मृत्यु है कथा का अवसान |
इसी तरह कोई अन्तर नहीं प्रेम और जीवन में
क्योंकि प्रेम ही से तो मिलता है जीवन |
प्रेम – जन्म – मरण – सहचर हैं
संसार रूपी समुद्र में जीवन की नैया संग
डूबते उतराते जीव के |
बात बस इतनी ही तो है जानने की
कि मृत्यु है अवसान / तो जीवन है मध्याह्न / और प्रेम है आरम्भ |
क्योंकि प्रेम जानता है समर्पित करना जीवन को |
क्योंकि प्रेम जानता है नहीं है अन्त जीवन का |
क्योंकि उसे ज्ञात है कि इस जीवन के बाद भी / है और एक जीवन
और उस जीवन के बाद भी / है एक और जीवन
अनवरत चलता रहता यह क्रम जीवन का
जिसका समापन है मृत्यु
तो चलती रहेगी प्रेम की कथा युगों युगों तक
आरम्भ करने को एक और नया जीवन
और इस तरह जीवन रहेगा शाश्वत और चिरन्तन
जिसके कारण प्रेम बन जाएगा सत्य – शाश्वत – चिरन्तन