प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणी, त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव ||
माँ भगवती की इसी प्रार्थना के साथ सर्वप्रथम तो सभी को कल से आरम्भ हो रहे नव सम्वत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ…
आंध्रप्रदेश में युगादि अथवा उगडि तिथि कहकर इस सत्य की उद्घोषणा की जाती है कि भारतीय नव वर्ष चैत्र प्रतिपदा से ही आरम्भ होता है, न कि पहली जनवरी से । आज से लगभग २०७४ वर्ष पूर्व अर्थात ईसा से ५७ वर्ष पूर्व मालवा के प्रतापी राजा विक्रमादित्य ने देशवासियों को शकों के अत्याचारी शासन से मुक्त किया था और उस विजय को अमर बनाने के लिये विक्रम सम्वत का प्रवर्तन किया था । भारतीय परम्परा में चक्रवर्ती राजा विक्रमादित्य शौर्य, पराक्रम तथा प्रजाहितैषी कार्यों के लिए प्रसिद्ध हैं । उन्होंने भारत को विदेशी राजाओं की दासता से मुक्त किया था । राजा विक्रमादित्य की विशाल सेना से विदेशी आक्रमणकारी सदा भयभीत रहते थे । ज्ञान - विज्ञान , कला, संस्कृति को विक्रमादित्य ने बहुत प्रोत्साहन दिया था | धन्वन्तरी जैसे महान वैद्य, वाराहमिहिर जैसे प्रकाण्ड ज्योतिषी, तथा कालिदास जैसे महान कवि उनकी सभा के नवरत्नों में थे |
यह अत्यन्त प्राचीन सम्वत गणित की दृष्टि से भी अत्यन्त सुगम है, क्योंकि इस सम्वत के अनुसार तिथि अंश दिनमान आदि सभी की गणना सूर्य-चन्द्र की गति पर आधारित हैं, और इस प्रकार यह पूर्ण रूप से वैज्ञानिक भी है | प्राचीन काल में नवीन सम्वत चलाने की विधि थी कि जिस नरेश को भी अपना संवत चलाना होता था उसे सम्वत आरम्भ करने से एक दिन पूर्व उन सब प्रजाजनों का ऋण अपनी ओर से चुका देना होता था जिन्होंने कभी भी किसी से भी किसी प्रकार का ऋण ले रखा हो, और ऐसा राजा लोग प्रायः अपनी विजय के उपलक्ष्य में करते थे | महाराज विक्रमादित्य ने पहले शकों को पराजित किया और फिर देश के सम्पूर्ण ऋण को, चाहे वह जिस व्यक्ति का रहा हो, स्वयं देकर अपने नाम से इस सम्वत का आरम्भ किया था, जो सम्राट पृथिवीराज के शासन काल तक चला | आज भले ही ईसवी सन का बोलबाला जीवन के हर क्षेत्र में हो, किन्तु भारतीय संस्कृति की पहचान यह विक्रम सम्वत ही है और विवाह मुंडन गृह प्रवेश जैसे समस्त शुभ कार्यों तथा श्राद्ध तर्पण आदि सामाजिक कार्यों का अनुष्ठान इसी सम्वत की भारतीय पंचांग पद्धति के अनुसार ही किया जाता है |
इस वर्ष विक्रम सम्वत २०७४ – जिसे “हेमलम्बी” नाम से जाना गया है – जो धन सम्पदा को देने वाला माना जाता है – का शुभारम्भ कल अर्थात २८ मार्च २०१७ को चैत्र मास शुक्ल प्रतिपदा को प्रातः ८ बजकर २८ मिनट पर हो रहा है | चन्द्रमा उत्तर भाद्रपद नक्षत्र में है | करण है किन्स्तुघ्न और योग है ब्रह्म | पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण आरम्भ किया था, इसलिये भी इस तिथि को नव सम्वत्सर के रूप में मनाया जाता है | भारत में वसन्त ऋतु के अवसर पर नूतन वर्ष का आरम्भ मानना इसलिये भी उत्साहवर्द्धक है क्योंकि इस ऋतु में प्रकृति में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं तथा चारों ओर हरियाली छाई रहती है और प्रकृति नवीन पत्र-पुष्पों द्वारा अपना नूतन श्रृंगार करती है, तथा ऐसी भी मान्यता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को दिन-रात का मान समान रहता है | राशि चक्र के अनुसार भी सूर्य इस ऋतु में राशि चक्र की प्रथम राशि मेष में प्रविष्ट होता है | यही कारण है भारतवर्ष में नववर्ष का स्वागत करने के लिये पूजा अर्चना की जाती है तथा सृष्टि के रचेता ब्रह्मा जी से प्रार्थना की जाती है कि यह वर्ष सबके लिये कल्याणकारी हो | और इसीलिये चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को कलश स्थापना कर नौ दिन के लिये माँ दुर्गा के तीन महत्वपूर्ण रूपों – दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती – सहित नवदुर्गा की पूजा अर्चना का आरम्भ होता है | नौवें दिन यानी नवमी को यज्ञ इत्यादि करके माँ भगवती से सभी के लिये सुख-शांति तथा कल्याण की प्रार्थना की जाती है । इन नौ दिनों तक बहुत से लोग व्रत उपवास आदि भी करते हैं | इस प्रकार भारतीय संस्कृति और जीवन का विक्रमी संवत्सर से गहन सम्बन्ध है |
एक बार पुनः भारतीय जन मानस की आस्था नव सम्वत्सर की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ… माँ भवानी सभी के जीवन से समस्त विघ्न बाधाओं को दूर भगा सबके जीवन को हर प्रकार के सुख – वैभव – धन – सम्पदा – स्वास्थ्य आदि से परिपूर्ण कर दें, इसी प्रार्थना के साथ सभी के लिए आज के मंगलमय दिवस की शुभकामनाएँ…
देवी प्रपन्नार्ति हरे प्रसीद, प्रसीद मातर्जगतोSखिलस्य |
प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं, त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ||