इन्द्रधनुष के रंगों में ये भेजा किसने प्रेम संदेसा |
सावन में जैसे पेड़ों की डाली पर हो धूप बसेरा ||
धरा पहनती मुतियन माला, पीली साड़ी अंग लिपटती |
पंछी गाते गान अनोखा, मीठी सी एक तान उभरती ||
दूर गगन के ओर छोर तक पंछी देखो उड़ते जाते |
और ओस से द्रवित निशा में राग भैरवी गाते जाते ||
राग भरा अनुराग भरा है खिला खिला सा जीवन सबका |
हर मन के आँगन में देखो सपनों का है मेला लगता ||
सजनी साजन के संग नाचे, प्रमुदित मन सिंगार सजाए |
मतवाली ये हवा करे अठ खेल ी, मन में प्रीत जगाए ||
ऐसे में है भान किसे शब्दों का या फिर अर्थों ही का |
प्रीत पगे ये भाव ही हर एक मन को हैं महकाते जाते ||
https://purnimakatyayan.wordpress.com/2016/08/11/