मोती जैसी ओस की बूँदों में भीगी सर्दियों की सुबह
कुछ ऐसी लगती मानों भोर की बयार गुनगुनाती हुई
कोहरे की चादर समेटने का प्रयास करती
आई हो गर्म पानी से नहा कर
कोहरे में लिपटी धूप का
कुछ श्वेत कुछ धूमिल सा परिधान लपेटे |
पंछियों की चहचहाट के साथ गाती गुनगुनाती
दूर कहीं झनझनाते किरणों के तार की मीठी तान पर
अलसाया-इठलाया-मदमाता सा नृत्य दिखाती
नीचे बिछे हरितवर्णी मखमली क़ालीन पर
धीरे धीरे उतरती |
उसके साथ ही सफ़ेद रुई के गोले सा श्वेत सूर्य
आसमान की गोद से उछलकर
किसी चंचल शिशु जैसा उछलता कूदता
ठण्डी हवा के साथ नाचता / धूप की गेंद से खेल ता
आ बैठता खिड़की की जाली पर |
इधर नर्म गुनगुनी धूप में
कोहरा भी अपनी ठण्ड मिटाने को
फैलाता अपनी बाहें, लेता अँगड़ाई
और फिर सिमट जाता धूप में सूखते रजाई गद्दों के बीच |
पर शीघ्र ही मस्ती में कुलाँचे भरता सूरज
पहुँच जाता है खिड़की के नीचे
इन कुछ पलों की भाग दौड़ से थका हारा / थोड़ा अलसाने के लिए |
धूप भी थक कर विश्राम करने हेतु
पुनः ओढ़ने लगती कोहरे की चादर
और एक छलावा सा दिखाती धीरे धीरे खिसक जाती
खिड़की के नीचे से होती हुई वापस अपने गाँव
दूर क्षितिज में गुम हो जाती |
तब अलसाई सी सन्ध्या तारों की चादर सजाए
अँधियारे के बिस्तर पर मानों सोने चली जाती |
लेकिन कुछ पल बाद ही
छा जाता साम्राज्य चन्दा की धवल चाँदनी का
जो कोहरे में सिमटी लजाती शर्माती
मोती जैसी ओस की बूँदों के साथ
धीरे धीरे नीचे उतरती आती
और दिन भर के उस मधुर अहसास को मन में सँजोए
खो जाती समस्त प्रकृति उसके ममताभरे आगोश में
मीठी लोरियों के साथ
देखने को मधुर सुहाने सपने…
सर्दियों की इस अलसाई सुबह का सभी को शुभ प्रभात…