मेरा जीवन कितना ऊँचा कितना लम्बा, कितनी दूर तलक है इसका ताना बाना
किन्तु कहीं कुछ और, कहीं कुछ और बनी मैं, कहीं बनी परछाईं. कहीं आकार बनी मैं ||
इसमें कितने ही हैं मैंने रूप समेटे, कितने ही छाया चित्रों के व्यूह समेटे |
इसमें जुड़कर कितनों को है अर्थ मिल गया, निज सार्थकता से किंचित् अनजान नहीं मैं ||
जग के कण कण में है फैला जीवन मेरा, नाप सको तो नापो इसकी लम्बाई को |
ताजमहल से भी मोहक व्यक्तित्व लिये मैं, पर्वत सी स्थिर, सागर सी गहरी हूँ मैं ||
चाहे नापो लम्बाई या गहराई को, या फिर स्थिरता की अग्निपरीक्षा ले लो |
परछाईं से दूर कभी न कोई जा सका, इसीलिये परछाईं ही रहना चाहूँ मैं ||
• कवियित्री, लेख िका, ज्योतिषी | ज्योतिष और योग से सम्बन्धित अनेक पुस्तकों का अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद | कुछ प्रसिद्ध मीडिया कम्पनीज़ के लिये भी लेखन | प्रकाशित उपन्यासों में अरावली प्रकाशन दिल्ली से देवदासियों के जीवन संघर्षों पर आधारित उपन्यास “नूपरपाश”, भारत के मध्यमवर्गीय परिवारों में नारियों के संघर्षमय जीवन की झलक प्रस्तुत करता भारतीय पुस्तक परिषद् दिल्ली से प्रकाशित उपन्यास “सौभाग्यवती भव” और एशिया प्रकाशन दिल्ली से स्त्री पुरुष सम्बन्धों पर आधारित उपन्यास का प्रथम भाग “बयार” विशेष रूप से जाने जाते हैं | साथ ही हिन्दी अकादमी दिल्ली के सौजन्य से अनमोल प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित “मेरी बातें” नामक काव्य संग्रह भी पाठकों द्वारा काफी पसन्द किया गया |
• WOW (Well-Being of Women) India नामक रास्ट्रीय स्तर की संस्था की महासचिव के रूप में क्षेत्र की एक प्रमुख समाज सेविका |
• सम्पर्क सूत्र: E-mail: katyayanpurnima@gmail.com
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