जीवन क्या है
मात्र चित्रों की एक अदला बदली…
किसी अनदेखे चित्रकार द्वारा बनाया गया एक अद्भुत चित्र…
जिसे देकर एक रूप / उकेर दी हैं हाव भाव और मुद्राएँ
और भर दिए हैं विविध रंग / उमंगों और उत्साहों के
सुखों और दुखों के / रागों और विरागों के
कर्तव्य और अकर्तव्य के / प्रेम और घृणा के
अनेकों पूर्ण अपूर्ण इच्छाओं-आकाँक्षाओं-महत्त्वाकांक्षाओं के
किसी अदेखी, लेकिन स्वप्न सी स्पष्ट एक कूची से…
कूची, जो बनी है सम्बन्धों, अधिकारों और कर्तव्यों के मेल से…
और फिर परिवार, समाज, राष्ट्र, काल के फ्रेम में जड़कर
टांग दिया है संसार के रंगमंच पर / बनाकर आकर्षण का केन्द्रबिन्दु…
एक ऐसा चित्र / समय के साथ साथ धुँधले पड़ जाते हैं
जिसके समस्त हाव भाव / सारी मुद्राएँ…
धीरे धीरे फीके पड़ जाते हैं जिसके सारे रंग…
लुप्त हो जाता है सारा आकर्षण उस चित्र का…
और तब / परिवार, समाज, राष्ट्र, काल के फ्रेम से निकाल कर
फेंक दिया जाता है मिलने को धूल में
और जड़ दिया जाता है एक अन्य नवीन चित्र उसी फ्रेम में
उसी अनदेखे चित्रकार द्वारा / जो कहलाता है अनादि और अनन्त
जो फूला नहीं समाता / अपने हर नए चित्र को देखकर
जो हो जाता है मुग्ध / अपनी हर नवीन रचना पर
तभी तो बना देता है उसे आकर्षण का केन्द्रबिन्दु
और टांग देता है संसार के रंगमंच पर…
लेकिन फिर कुछ ही समय पश्चात / छा जाती है उदासीनता उस चित्रकार पर
हो जाता है विरक्त अपनी ही उस अद्भुत कृति से…
तभी तो पुराना पड़ते ही अपने चित्र के
निकाल फेंकता है उसे उस ख़ूबसूरत से फ्रेम से
और जड़ देता है वहाँ बनाकर एक दूसरा नवीन चित्र
जिसमें बनाता है नवीन हाव भाव और मुद्राएँ
और भरता है रंग / जो होते हैं पहले से भी नए और खिले खिले
उमंगों और उत्साहों के / सुखों और दुखों के / रागों और विरागों के
कर्तव्य और अकर्तव्य के / प्रेम और घृणा के
अनेकों पूर्ण अपूर्ण इच्छाओं-आकाँक्षाओं-महत्त्वाकांक्षाओं के
सम्बन्धों, अधिकारों और कर्तव्यों की कूची से…
इस तरह जीवन्त जीवन / होकरके सारहीन / रंगहीन
बार बार मिला दिया जाता है मिट्टी में
अपने ही चित्रकार के हाथों / रचने को एक नवीन रचना…
चलता रहता है यही क्रम / निरन्तर / अनवरत / अविरत
बीतते जाते हैं पल-छिन / दिन-मास / वर्ष-युग-कल्प
चित्रों की इसी अदला बदली में…
क्योंकि होते हुए भी असार / यही है सत्य जीवन का
शाश्वत और चिरन्तन…