ना हमारे बीच है कोई ऐसा खेल
जिसमें हो हार या जीत
फिर क्यों रूठी रहती है प्रीत
आओ मिलकर इसे मनाएँ / ताकि बच जाए टूटने से / प्रेम के मधु घट का प्याला ।
ना मुझमें है कोई खोट / ना ही हूँ मैं खान समस्त गुणों की
ना तुममें है कोई खोट / ना तुम ही हो खान समस्त गुणों की
हम दोनों ही हैं एक / फिर कौन कम और कौन ज़्यादा
तो आओ करें ऐसा कुछ / कि टूटने से बच जाए / प्रेम के मधु घट का प्याला ।
ना तुम पूर्ण / ना ही हम अधूरे
ना हम पूर्ण / ना ही तुम अधूरे
पूर्णता और अपूर्णता / भाव हैं किसी दूसरे ही लोक के
जब हम दोनों ही हैं साधारण मानव
तो फिर कौन कम और कौन ज़्यादा
तो आओ हो जाएँ एक कुछ इस तरह / कि टूटने से बच जाए / प्रेम के मधु घट का प्याला ।
कभी कुछ कहा तुमने / जो शायद रहा अनसुना / मेरे मन से
कभी कुछ कहा मैंने / जो शायद नहीं पहुँचा / मन तक तुम्हारे
छोटी छोटी मीठी इन बातों को / आओ मिलकर कर लें ताज़ा हम
कहें सुनाएँ कुछ ऐसा / ताकि बच जाए टूटने से / प्रेम के मधु घट का प्याला ।
देखे हैं हमने सपने / चलने के साथ मिलकर
जीवन में / सुख दुःख की आँख मिचौली में
कष्टों की भीषण ज्वाला में / या सावन की मधु बरसातों में
रोने हँसने गाने नाचने के / साथ मिलकर
अपनी ही किसी कहानी पर / खुल कर खिलखिलाने के / साथ मिलकर
पकड़े एक दूजे की बाँह / बढ़ जाने के / साथ मिलकर
टूट कर बिखर न जाए वो सपना / आओ मिलकर सहेजें कुछ ऐसे उस सपने को
जगने पर बन जाए जो हक़ीक़त / ताकि टूटने से बच जाए / प्रेम के मधु घट का प्याला…