या देवी सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
आज द्वितीया तिथि है – दूसरा नवरात्र – माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना का दिन | देवी का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी का है – ब्रह्म चारयितुं शीलं यस्याः सा ब्रह्मचारिणी – अर्थात् ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति करना जिसका स्वभाव हो वह ब्रह्मचारिणी | इस रूप में भी देवी के दो हाथ हैं और एक हाथ में जपमाला तथा दूसरे में कमण्डल दिखाई देता है | जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है, ब्रह्मचारिणी का रूप है इसलिये निश्चित रूप से अत्यन्त शान्त और पवित्र स्वरूप है तथा ध्यान में मग्न है | यह रूप देवी के पूर्व जन्मों में सती और पार्वती के रूप में शिव को प्राप्त करने के लिये की गई तपस्या को भी दर्शाता है | देवी के इस रूप को तपश्चारिणी भी कहा जाता है |
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलौ, देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा
ऐसा भी माना जाता है कि अगर आप प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता चाहते हैं, विशेष रुप से छात्रों को माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना अवश्य करनी चाहिये । इनकी कृपा से बुद्धि का विकास होता है और प्रतियोगिता आदि में सफलता प्राप्त होती है | इसके लिए निम्न मन्त्र के जाप का विधान है:
विद्याः समस्तास्तव देवि भेदास्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु ।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः ।।
दोनों करकमलों में अक्षमाला और कमण्डल धारण किये माँ ब्रह्मचारिणी हम सब पर प्रसन्न रहें…