जीवन क्या है ? एक ऐसी पगडण्डी
पग पग पर जहाँ हैं तीखे और तेज़ मोड़
जहाँ घटानी पड़ती है गति बार बार
आगे क्या होगा / इसका कुछ भान नहीं
सामने से क्या आएगा / इसका भी कोई ज्ञान नहीं
बस चलते जाना है / बिना रुके / बिना थके |
हर पल चुनौतियाँ / नवीन / कठिन
ऊँचे नीचे पथरीले उलझन भरे मार्ग
कहीं प्रकाश / तो कहीं अन्धकार घना
गिर पड़ने पर भय टूट जाने का
पर चलते जाना है / बिना रुके / बिना थके |
या फिर निरन्तर प्रवाहित कोई सरिता
दुखों चिन्ताओं के अनेकों जलयान जहाँ बैठे हैं लंगर डाले
अनगिनती सीप घोंघे छिपे हैं जिसके भीतर
कभी चलती है तेज़ पवन / तो मच जाती है हलचल
जीवन की इस सरिता में / जिसमें तिरती है मन की नौका
डोल उठती है जो तनिक सी भी हलचल से
डोल उठते हैं सारे जलयान / मानों हों डूब जाने को आतुर
कभी होता है प्रवाह शान्त इस सरिता का
तो हो जाती किसी तपस्वी सम निस्पृह
फिर भी रहती है प्रवाहित / बिना रुके / बिना थके |
पर कैसे इतने परिवर्तन ? कैसे इतने रूप ?
कहीं कोई है अनदेखा सा / अजाना सा
जो नचाता है अपनी इच्छा से / डोर है हाथ में जिसके
अन्यथा हो जाएगा अवसान इस खेल का असमय ही
हो जाएगा पटाक्षेप इस नाटक का मध्यान्तर में ही
हो जाएगा समापन उपन्यास का / बिना किसी उपसंहार के ही
कोई है चित्रकार / छिपा हुआ / ओझल दृष्टि की सीमाओं से
भरता है जो रंग / अपनी ही रचना में / भरता है भाव भी
तभी तो बस चलते जाना है / बिना रुके / बिना थके |
कभी तो पहुँच ही जाएँगे गन्तव्य तक अपने
गन्तव्य – जो नियत किया है उसी अदेखे कलाकार ने
और तब अनुभव होगा वास्तविक आनन्द का / आनन्द के अतिरेक का
आनन्द – जिसके कारण हमारा दिल गा उठेगा मधुर गान
आनन्द – थिरक उठेंगे हमारे पाँव जिसकी मतवाली लय पर
आनन्द – जो भर देगा सकारात्मकता हमारे विचारों में
और तब ये जटिल संसार लगने लगेगा सरल
पीछे छूटे तीखे मोड़ / हो जाएँगे ओझल दृष्टि से
सब कुछ होगा जहाँ प्रत्यक्ष / नहीं होगा कोई भी आवरण
शान्त हो जाएगा सरिता के जल में उठा तूफ़ान
और तब झूम उठेगा मन अपनी ही ताल और लय पर
आनन्द के उस मधुर संगीत के साथ
क्योंकि चलते जाना है / बिना रुके / बिना थके
क्योंकि रहना है प्रवाहित / बिना रुके / बिना थके…