मोक्ष, अहं का नाश |
अहं क्या है ?
मनुष्य के सुखी होने की अनुभूति ?
या फिर दर्द का अहसास ?
किसी का अपना होने की राहत ?
या फिर पराया होने का दर्द ?
लेकिन दुःख में भी तो है कष्ट का आनन्द |
अपनेपन से ही उपजता है परायापन |
एक ही भाव के दो अनुभाव हैं दोनों |
उसी तरह जैसे समुद्र में जल एक ही है
वायु का शान्त प्रवाह उसे बनाए रखता है शान्त, अविचल तपस्वी
तेज़ बहे हवा, तो मचल उठती हैं तरंगे |
एक ही जल कभी बन जाता है श्वेत धवल प्रकाशित, आनन्द,
और कभी बन जाता है
फेन की चादर से आवृत्त, तमस में जकड़ा, दुःख |
लेकिन समय आने पर जल भी बन जाता है वाष्प
आकाश में उड़, हो जाता है लीन शून्य में |
एकमात्र परिवर्तन जल का, अहं का
हो जाए, तो नहीं रहता कुछ भी शेष |
रह जाती है केवल अनावृत मुक्त आत्मा
नंगी भूमि की भाँति
जिसे नहीं है आवश्यकता स्वयं पर कुछ लादने की |
और इसी को योगी कहते हैं “मोक्ष”….
• कवियित्री, लेख िका, ज्योतिषी | ज्योतिष और योग से सम्बन्धित अनेक पुस्तकों का अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद | कुछ प्रसिद्ध मीडिया कम्पनीज़ के लिये भी लेखन | प्रकाशित उपन्यासों में अरावली प्रकाशन दिल्ली से देवदासियों के जीवन संघर्षों पर आधारित उपन्यास “नूपरपाश”, भारत के मध्यमवर्गीय परिवारों में नारियों के संघर्षमय जीवन की झलक प्रस्तुत करता भारतीय पुस्तक परिषद् दिल्ली से प्रकाशित उपन्यास “सौभाग्यवती भव” और एशिया प्रकाशन दिल्ली से स्त्री पुरुष सम्बन्धों पर आधारित उपन्यास का प्रथम भाग “बयार” विशेष रूप से जाने जाते हैं | साथ ही हिन्दी अकादमी दिल्ली के सौजन्य से अनमोल प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित “मेरी बातें” नामक काव्य संग्रह भी पाठकों द्वारा काफी पसन्द किया गया |
• WOW (Well-Being of Women) India नामक रास्ट्रीय स्तर की संस्था की महासचिव के रूप में क्षेत्र की एक प्रमुख समाज सेविका |
• सम्पर्क सूत्र: E-mail: katyayanpurnima@gmail.com
View all posts by purnimakatyayan