इस विशाल ब्रह्माण्ड में मैं क्या हूँ / शायद कुछ भी नहीं |
शायद कहीं होगा कोई एक छोटा सा शून्य
और उस छोटे से शून्य के मध्य
मैं – एक छोटा सा बिन्दु
शायद एक अत्यन्त सूक्ष्मातिसूक्ष्म अणु
जिसे ढूँढ़ पाना भी मुश्किल |
लेकिन फिर भी मैं हीन नहीं हूँ
लेकिन फिर भी मैं क्षीण नहीं हूँ
क्योंकि मैं ही तो हूँ ऊर्जा का भौतिक रूप |
ऊर्जा – जो पदार्थ बनने के क्रम में
हो जाती है विभक्त अनेक रूपों में |
ऊर्जा के विस्फोट से उपजे
उन्हीं अनेक रूपों में से एक हूँ मैं
असंख्य आकाशगंगाओं के मध्य भटकती
मेरी अपनी ही आत्मा का भौतिक स्वरूप |
आँखों में सँजोए अनगिनती सपने
मन में लिए लाखों इच्छाएँ
बार बार खोती हूँ – विलीन हो जाती हूँ
अपने ही शून्य में
लेकिन पुनः धारण कर लेती हूँ यही भौतिक रूप
क्योंकि इस भौतिक तत्व की ही होती हैं इच्छाएँ – आकांक्षाएं |
कुछ और पाने की चाह में
उगा लेती हूँ पंख अपने मन के साथ
और उड़ती जाती हूँ तलाशने को नित नए क्षितिज |
क्योंकि नश्वर होते हुए भी
अपना अहम् तो मैं ही हूँ…..
उस शाश्वत सत्य का / उस अप्रतिम ऊर्जा का
मूर्त रूप तो मैं ही हूँ……….