मन में अन्तर्विरोध / मन में लाचारी
मन में हैरानी / परेशानी / क्यों है ये सब ?
कैसे हैं ये नियम / सिद्धान्त / क्यों हैं ये इतने जटिल ?
घूम रहा है हर कोई / लगाए हुए एक मुखौटा |
क्या है कोई परिभाषा तथाकथित मित्र की ?
क्या है कोई परिभाषा तथाकथित शत्रु की ?
तथाकथित ??? हाँ तथाकथित
क्योंकि न है कोई मित्र / न ही है कोई शत्रु
घूम रहा है हर कोई / लगाए हुए बस एक मुखौटा |
हमारी आशाओं के अनुरूप / हमारी इच्छाओं के अनुरूप
जिन्हें देख लगता है / सपने होंगे साकार / इस परिचय से
क्योंकि यही तो चाहिए था मुझे / बिल्कुल ऐसा ही
पर वास्तविक / मुखौटा नहीं |
मुखौटे टूट जाते हैं / गल जाते हैं / बिखर जाते हैं
धुल जाते हैं सारे रंग सत्य के गर्म जल से
और सामने आता है तब एक ऐसा चेहरा / जो है असली
लेकिन विपरीत हमारी आशाओं के / इच्छाओं के
जो होता है नग्न / बिना किसी मुखौटे के / बिना कोई रंग लिए |
और तब सम्बन्धों की गर्मी / रह जाती है मात्र एक दोहर सी
तनिक ठण्डा हुआ मौसम / या कि मदिराया तनिक सा
हुई थोड़ी कंपकंपाहट बदन में / या मचल उठा मन
ओढ़ लिया सम्बन्धों की दोहर को / कुछ पलों के लिए |
मौसम में आई तनिक अनुकूलता / सब कुछ हुआ शान्त
उतार फेंका दोहर को / डाल दिया फ़र्श पर / रौंदे जाने के लिए |
फिर धीरे धीरे चढ़ जाती है सम्बन्धों की उस दोहर पर
अहंकार की / क्रोध की / ऊँच नीच की / तेरे मेरे की / वासनाओं की / धूल
झाड़ने से भी नहीं निकलती जो / क्योंकि समा जाती है हर एक रोएँ में |
फिर नहीं दिखाई देता कुछ भी / नहीं महसूस होता कुछ भी
न अपनेपन का कोई रंग / न ही अपनेपन की कोई मिठास
मुखौटे हटे चेहरे की तरह / हो जाते हैं ये सम्बन्ध भी नग्न
क्यों बदलते हैं इतने मुखौटे / सम्बन्ध ?
क्यों हो जाते हैं इतने अहंकारी / सम्बन्ध ?
क्यों हो जाते हैं इतने स्वार्थी / सम्बन्ध ?
क्यों हो जाते हैं इतने कुटिल / सम्बन्ध ?
मन अकुलाता है / बढ़ती जाती है द्विविधा मन की
बढ़ती जाती है हैरानी / परेशानी / लाचारी |
लेकिन मत हो निराश / मत हो हैरान / परेशान
मत पड़ किसी द्विविधा में / ऐ आकुल व्याकुल मन मेरे
क्योंकि बनेगा ऐसा समबन्ध / जो होगा निस्वार्थ
अहंकार से रहित / क्रोध, वासना, सन्देह, व्यंग्य से रहित
जिससे मिलकर मन हो जाएगा प्रफुल्लित
होगी दूर सारी हैरानी / परेशानी / लाचारी
प्रेम और विश्वास की मलय पवन के मस्त प्रवाह के साथ
उड़ जाएगी मन की सारी द्विविधा
और तब स्नेहपूर्ण निस्वार्थ सम्बन्धों की अमृतधाराएँ
कर देंगी रससिक्त मेरे आकुल व्याकुल मन को
बहा ले जाएँगी स्नेह के अगाध समुद्र में / मेरे समूचे अस्तित्व को
क्योंकि यही है एकमात्र सत्य…