आज मकर संक्रान्ति का पावन पर्व है | मकर संक्रान्ति – जिसे “उत्तरायणी” भी कहा जाता है | इसका कारण है कि वर्ष को दो भागों में बाँटा गया है | प्रथम भाग “उत्तरायण” कहलाता है और द्वितीय भाग “दक्षिणायन” | पौष मास में मकर संक्रान्ति के दिन से सूर्य की उत्तरायण गति प्रारम्भ हो जाती है इसलिये इसको उत्तरायणी भी कहते हैं | संक्रान्ति का अर्थ है संक्रमण – जब सूर्य किसी एक राशि को पार करके दूसरी राशि में प्रवेश अर्थात संक्रमण करता है तो उसे संक्रान्ति कहा जाता है । यों तो सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में गोचर प्रत्येक माह होता है और इस प्रकार प्रत्येक माह ही संक्रान्ति काल भी होता है | और इस प्रकार सूर्य के बारह राशियों में बारह माह में गोचर करने के कारण कुल मिलाकर बारह संक्रान्तियाँ होती हैं | लेकिन मकर संक्रान्ति और कर्क संकान्ति का विशेष महत्त्व माना जाता है, क्योंकि दोनों ही समय मौसमों में बहुत अधिक परिवर्तन होता है, प्रकृति में परिवर्तन होता है, और इस सबका प्रभाव मनुष्य के जीवन पर पड़ता है |
यहाँ हम बात कर रहे हैं सूर्य के मकर राशि में संक्रमण की | जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है तो उस प्रविष्टि काल को मकर संक्रान्ति कहा जाता है | सामान्यत: भारतीय पंचांग की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है । इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही पड़ता है । मकर संक्रान्ति का पर्व पूरे भारतवर्ष में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है | कर्नाटक, केरल तथा आंध्रप्रदेश में इसे केवल “संक्रान्ति” कहते हैं, तो हरियाणा और पंजाब में लोहड़ी के नाम से जाना जाता है | पर्व से एक दिन पूर्व अर्थात 13 जनवरी को शाम का अँधेरा घिरते ही आग जलाकर अग्नि पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल, मूँगफली और भुने हुए मक्के की खीलों की आहुति दी जाती है | इस अवसर पर लोग मूँगफली, तिल की गज़क, रेवड़ियाँ आदि आपस में बाँटकर खुशियाँ मनाते हैं |
उत्तर प्रदेश में यह पर्व मुख्य रूप से दान का पर्व है | इलाहाबाद में इस दिन से एक माह के माघ मेले का आरम्भ होता है | समूचे उत्तर प्रदेश में इसे “खिचड़ी” के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस दिन उड़द की काली दाल की खिचड़ी के सेवन और दान की प्रथा है | महाराष्ट्र में भी विवाहित महिलाएँ विवाह के बाद की प्रथम मकर संक्रान्ति को कपास, तेल, नमक आदि वस्तुएँ अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं | बंगाल में तो गंगासागर में इस दिन विशाल मेला भरता है और लोग स्नान के पश्चात तिलों का दान करते हैं | ऐसी मान्यता है कि इसी दिन गंगा जी भागीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं | तमिलनाडु में चार दिनों तक पोंगल नाम से इस पर्व को मनाया जाता है तो असम में भोगली बिहू के नाम से जाना जाता है | इस प्रकार इस पर्व के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के विविध रूपों की झलक देखने को मिलती है |
शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है । जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होने लगता है तब दिन बड़े और रात छोटी होने लगती है । दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा । अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अन्धकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है । प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्यशक्ति में वृद्धि होगी । इसीलिए इस पर्व को यह आलोक का पर्व भी माना जाता है । और यही कारण है कि समस्त भारतवर्ष में विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है । वैदिक काल में उत्तरायण को `देवयान` तथा दक्षिणायन को `पितृयान` कहा जाता था । ऐसा माना जाता है कि मकर संक्रान्ति के दिन यज्ञ में दिये गए द्रव्य को ग्रहण करने के लिए देवतागण पृथ्वी पर अवतरित होते हैं । ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं और शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, इसलिए भी इस पर्व का महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है | सूर्य की गति से सम्बन्धित होने के कारण यह पर्व हमारे जीवन में गति, नव चेतना, नव उत्साह और नव स्फूर्ति का प्रतीक है । फिर इससे हमें सूर्य का प्रकाश भी अधिक समय तक मिलने लगता है, जो भारत जैसे कृषि प्रधान देश में फसलों के लिए भी अत्यन्त आवश्यक है । और इस प्रकार यह पर्व अधिक तथा नवीन उत्पादन का और रचनात्मकता भी प्रतीक है ।
सूर्यदेव का समस्त प्राणियों पर, वनस्पतियों पर अर्थात समस्त प्रकृति पर – जड़ चेतन पर – कितना प्रभाव है – इसका वर्णन गायत्री मन्त्र में देखा जा सकता है | इस मन्त्र में भू: शब्द का प्रयोग पदार्थ और ऊर्जा के अर्थ में हुआ है – जो सूर्य का गुण है, भुवः शब्द का प्रयोग अन्तरिक्ष के अर्थ में, तथा स्वः शब्द आत्मा के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है | शुद्ध स्वरूप चेतन ब्रह्म भर्ग कहलाता है | इस प्रकार इस मन्त्र का अर्थ होता है – पदार्थ और ऊर्जा (भू:), अन्तरिक्ष (भुवः), और आत्मा (स्वः) में विचरण करने वाला सर्वशक्तिमान ईश्वर (ॐ) है | उस प्रेरक (सवितु:), पूज्यतम (वरेण्यं), शुद्ध स्वरूप (भर्ग:) देव का (देवस्य) हमारा मन अथवा बुद्धि धारण करे (धीमहि) | वह परमात्मतत्व (यः) हमारी (नः) बुद्धि (धियः) को अच्छे कार्यों में प्रवृत्त करे (प्रचोदयात्) |
सूर्य समस्त चराचर जगत का प्राण है यह हम सभी जानते हैं | पृथिवी का सारा कार्य सूर्य से प्राप्त ऊर्जा से ही चलता है और सूर्य की किरणों से प्राप्त आकर्षण से ही जीवमात्र पृथिवी पर विद्यमान रह पाता है | गायत्री मन्त्र का मूल सम्बन्ध सविता अर्थात सूर्य से है | गायत्री छन्द होने के कारण इस मन्त्र का नाम गायत्री हुआ | इसका छन्द गायत्री है, ऋषि विश्वामित्र हैं और देवता सविता हैं | इस मन्त्र में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है, जिसके कारण प्राणों का प्रादुर्भाव होता है, पाँचों तत्व और समस्त इन्द्रियाँ सक्रिय हो जाती हैं और लोक में अन्धकार का विनाश हो प्रकाश का उदय होता है | जीवन की चहल पहल आरम्भ हो जाती है | नई नई वनस्पतियाँ अँकुरित होती हैं | एक ओर जहाँ सूर्य से ऊर्जा प्राप्त होती है वहीं दूसरी ओर उसकी सूक्ष्म शक्ति प्राणियों को उत्पन्न करने तथा उनका पोषण करने के लिये जीवनी शक्ति का कार्य करती है | सूर्य ही ऐसा महाप्राण है जो जड़ जगत में परमाणु और चेतन जगत में चेतना बनकर प्रवाहित होता है और उसके माध्यम से प्रस्फुटित होने वाला महाप्राण ईश्वर का वह अंश है जो इस समस्त सृष्टि का संचालन करता है | इसका सूक्ष्म प्रभाव शरीर के साथ साथ मन और बुद्धि को भी प्रभावित करता है | यही कारण है कि गायत्री मन्त्र द्वारा बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करने की प्रार्थना सूर्य से की जाती है | अर्थात् सूर्य की उपासना से हम अपने भीतर के कलुष को दूर कर दिव्य आलोक का प्रस्तार कर सकते हैं | इस प्रकार सूर्य की उपासना से अन्धकार रूपी विकार तिरोहित हो जाता है और स्थूल शरीर को ओज, सूक्ष्म शरीर को तेज तथा कारण शरीर को वर्चस्व प्राप्त होता है | सूर्य के इसी प्रभाव से प्रभावित होकर सूर्य की उपासना ऋषि मुनियों ने आरम्भ की और आज विविध अवसरों पर विविध रूपों में सूर्योपासना की जाती है |
इस पर्व के पीछे बहुत सी कथाएँ भी प्रचलित हैं | जैसे महाभारत के अनुसार भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण प्रस्थान के समय को ही अपने परलोकगमन के लिये चुना था | क्योंकि ऐसी मान्यता है कि उत्तरायण में जो लोग परलोकगामी होते हैं वे जन्म मृत्यु के बन्धन से मुक्ति पाकर ब्रह्म में लीन हो जाते हैं | यह भी कथा है कि अपने पूर्वजों को महर्षि कपिल के शाप से मुक्त कराने के लिये इसी दिन भागीरथ गंगा को पाताल में ले गए थे और इसीलिये कुम्भ मेले के दौरान मकर संक्रान्ति के स्नान का विशेष महत्व होता है |
कथाएँ जितनी भी हों, पर इतना तो सत्य है कि यह पर्व पूर्ण हर्षोल्लास के साथ किसी न किसी रूप में प्रायः सारे भारतवर्ष के हिन्दू सम्प्रदाय में मनाया जाता है और हर स्थान पर भगवान सूर्यदेव की पूजा अर्चना की जाती है | और गुजरात तथा राजस्थान में तो उत्तरायण के नाम से इस पर्व को मनाते समय पतंगें भी उड़ाई जाती हैं | आजकल तो वैसे समूचे उत्तर भारत में मकर संक्रान्ति को पतंग उड़ाने का आयोजन किया जाता है |
तो आइये हम सब भी अपनी अपनी कामनाओं की, महत्त्वाकांक्षाओं की पतंगे जितनी ऊँची उड़ा सकते हैं उड़ाएँ | संक्रान्ति पर्व परिवर्तन का पर्व है | एक ऐसा परिवर्तन जो सार्थकता लिये हुए होता है | तो क्यों न परिवर्तन के इस प्रकाश पर्व को इस संकल्प के साथ मनाएँ कि समाज में व्याप्त कुरीतियाँ और दुराचार सूर्यदेव की दृष्टि से भस्म हो जाएँ और एक स्वस्थ समाज का सूत्रपात हो | भगवान सूर्यदेव की अर्चना करते हुए प्रार्थना करें कि हम सबके जीवन से अ ज्ञान का, मोह का, लोभ लालच का, ईर्ष्या द्वेष का अन्धकार तिरोहित होकर ज्ञान, निष्काम कर्मभावना, सद्भाव और निश्छल तथा सात्विक प्रेम के प्रकाश से हम सबका जीवन आलोकित हो जाए | इसी कामना के साथ सभी पाठकों को मकर संक्रान्ति के प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ…