आज सुबह से अच्छी खासी बारिश हो रही है – मुरझाई प्रकृति में मानों नए प्राण मिल गए हों – बादलों का गम्भीर गर्जन मानों मृदंग की थाप… कोयल की पंचम के संग सुर मिलाते पपीहे की पियू पियू… पवन देव से मिल कर मतवाली हो चुकी बूँदों का मधुरिम गान… और इस सबको देख कर मस्त हुई दामिनी का मादक नृत्य… कौन पत्थरदिल होगा जिसके मन का बिरवा ऐसे शराबी मौसम में झूम न उठेगा…
कजरारी बरसात जो आई, मन का बिरवा नाच उठा |
बूँदों के संग सतरंगी सपनों में वह तो झूम उठा ||
सिहर सिहर पुरवैया चलती, धरती सारी लहराती |
वन में मोर मोरनी नाचें, कोयलिया गाना गाती ||
आसमान भी सात रंग की सुर संगम सुन झूम उठा |
बूँदों के संग सतरंगी सपनों में वह तो झूम उठा ||
आज मेघ पर चढ़ी जवानी, बौराया सा फिरता है |
किन्तु पपीहा तृप्त हुआ ना, ये कैसा पागलपन है ||
मस्त बिजुरिया की तड़पन को लख कर वह भी हूक उठा |
बूँदों के संग सतरंगी सपनों में वह तो झूम उठा ||
जिस पपिहे की प्यास बुझा पाया ना कोई भी बादल
अरी दामिनी, मधु की गागर से तू उसकी प्यास बुझा ||
घन की ताधिन धिन मृदंग पर पात पात है झूम उठा |
बूँदों के संग सतरंगी सपनों में वह तो झूम उठा ||