आज शनिवार है, दो दिन मस्ती भरे – छुट्टी की मस्ती – ठण्ड की मस्ती – कोहरे से आँखमिचौली करते सूरज की मस्ती – और इस सबके साथ गरम चाय की चुस्कियों संग गरमागरम पकौड़ियों की मस्ती… तो कईं न माननीय अटल बिहारी बाजपेयी जी – जिनका कल सारा देश जन्मदिन मना रहा है – की पंक्तियाँ हम भी मिलकर दोहरा लें…
आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अँधियारा, सूरज परछाईं से हारा
अन्तरतम का नेह निचोड़ें, बुझी हुई बाती सुलगाएँ
आओ फिर से दिया जलाएँ ||
हम पड़ाव को समझे मंज़िल, लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल
वतर्मान के मोहजाल में, आने वाला कल न भुलाएँ
आओ फिर से दिया जलाएँ ||
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा, अपनों के विघ्नों ने घेरा
अन्तिम जय का वज़्र बनाने, नव दधीचि हड्डियाँ गलाएँ
आओ फिर से दिया जलाएँ ||
साथ ही आज सदी के महान पार्श्व गायक मुहम्मद रफ़ी साहब (स्वर्गीय नहीं, क्योंकि कलाकार की कभी मौत नहीं होती) का भी जन्मदिवस है, जिनका गाया ये सदाबहार गीत “तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा, इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा” सुनना न भूलें – जो आज के परिप्रेक्ष्य में वास्तव में खरा उतरता है: