अरुण भोर सूरज की मनुहार सी करती
काँपती धूप को आगे करती
धुँध से छिपती छिपाती प्रकट होती |
मनों में नई उमंगें लिए नन्हे शिशु समान पंछी
मीठी चहचहाट के तार झनकारते
शरद धूप के साथ उतर आते अँगना में |
अरुण भोर की मनुहार से चमकता मुखमण्डल लिए
शीत प्रियतमा के साथ अठ खेल ियाँ करते
माघ के कोहरे का कम्बल लपेटे
उत्तरदिशा की ओर प्रस्थान करते भगवान भास्कर
अभिनन्दन करती ठिठुरती पवन को
भेंट में दे देते अपना कोहरे का कम्बल |
काँपती धूप के साथ आँखमिचौली खेलते / नृत्य दिखाते
ओस जमी घास पर पहर भर विश्राम करते |
नहीं सहन कर पाती शीत प्रियतमा
अपने प्रियतम से प्रहर भर का भी विछोह
पुनः ठिठुराती लास्य सा दिखाती आ जाती निकट
छीन लाती सौतन पवन से
प्रियतम सूर्य का कोहरे का कम्बल
छोड़ आती उसे रोने के लिए ओस के आँसू |
ले चलती निजं प्रियतम को रश्मि पथ से
दूर उत्तर दिशा में / प्यार से सहलाती / पुचकारती
दुबक जाते दोनों रात की गोद में
रचने को प्रेम का नवीन अध्याय |
और तब नीचे झाँकता चाँद
प्रेयसि चन्द्रिका के साथ रास रचाता
ओस के मोतियों से उसे सजाता
माघ की ठिठुरती काँपती रात को भी बाहों में भरता
हो जाता मगन प्रकृति के साथ रासलीला में |
उधर अरुण भोर
रात्रि शयन के बाद पुनः करती मनुहार अरुणदेव की
रात भर की रासलीला से थकित ठिठुरती प्रकृति को
नीचे आ दे दें जीवनदान…
हम सब भी साथ मिलकर मकर राशि में गोचर कर रहे उत्तरपथगामी भगवान भास्कर का अभिनन्दन करें, ताकि इस कड़ाके की ठण्ड में समस्त जड़ चेतन को धूप की गर्माहट के रूप में नवजीवन प्राप्त हो… अग्नि प्रज्वलित कर खील-मूँगफली-रेवड़ी से हर सुबह उदित होने वाले दिनकर का स्वागत करें – ताकि सबके ही जीवन में सुखों की धूप खिल उठे… सूर्यदेव की उपासना करें कि हम सबकी बुद्धि से अ ज्ञान का अन्धकार दूर भगा ज्ञान का प्रकाश प्रसारित करें… और फिर लोहड़ी तथा मकर संक्रान्ति के पर्व की मस्तियों में खो जाएँ… सभी को आज लोहड़ी और कल मकर संक्रान्ति के पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ…
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमही धियो यो नः प्रचोदयात…