नृत्य क्या है / जीवन जीने की एक कला
इसीलिए तो समूचा जीवन ही है एक नृत्य
मस्ती में भर / भूलकर सारा विषाद / मिलकर एक दूसरे के साथ
वैसे ही जैसे / किया नृत्य नटवर नागर ने
तो हुआ पूर्ण वो नृत्य / राधा के महारास के साथ
नटराज ने मचाया ताण्डव
तो शान्त किया हिमसुता ने / रचकर मधुर लास्य
रचाती रहती है नित नवीन नृत्य / ब्रहमाण्ड के रंगमंच पर / प्रकृति नटी
क्योंकि नृत्य है एक ऐसा राग / जो हो जाता है परिणत विराग में
क्योंकि नृत्य है एक ऐसी आग / जो हो जाती है परिणत आह्लाद में
इसीलिए करती हूँ मैं नृत्य / रचाती हूँ महारास / बनकर प्रकृतिरूपा
उठाती हूँ दोनों हाथों को आकाश की ओर
और हस्तक बना / भर लेती हूँ सारा आकाश अपने हाथों में
घूमती हूँ बिन्दु के सामान / लेती हूँ अनेको तिहाईयाँ / आवर्तन / गतें और परनें
लख कर मेरा मादक नृत्य / थिरक उठते हैं पाँव विराट के भी
झूम उठता है सकल जड़ चेतन / जब साथ में मेरे झूमता है विराट
बढ़ती जाती है गति / बढ़ते जाते हैं आवर्त / हर गत पर / हर भाव पर
नहीं टोकती कोई मुद्रा मुझे / नहीं करती कोई इशारा / रुक जाने का
और मैं नाचती जाती हूँ / घूमती जाती हूँ बिना रुके / बेदम तिहाइयों पर
उन्माद में भर घूमती घूमती / हो जाती हूँ एक / उस विशाल के साथ
हो जाती हूँ चेतनाशून्य / और खो जाती हूँ उस शून्य में
आनन्द के उस क्षण में / जी लेती हूँ सारा जीवन एक ही साथ
आनन्द के उस क्षण में / जब हो जाता है शिथिल मेरा मन
भूल जाती हूँ सारा ज्ञान / सारी उपलब्धियाँ
और कर देती हूँ समर्पित स्वयं को / उस असीम के लिए
हो जाती हूँ विलीन उसमें ही / सदा सदा के लिए
यही है सत्ता का सत्य / जो हो जाती है असत्य / जब मिल जाती है उस चरम सत्य में…