माँ में चन्दा की शीतलता, तो सूरज का तेज भी उसमें ।
हिमगिरि जैसी ऊँची है, तो सागर की गहराई उसमें ।।
शक्ति का भण्डार भरा है, वत्सलता की कोमलता भी ।
भला बुरा सब गर्भ समाती, भेद भाव का बोध न उसमें ।।
बरखा की रिमझिम रिमझिम बून्दों का है वह गान सुनाती ।
नेह अमित है सदा लुटाती, मोती का वरदान भी उसमें ।।
धीरज की प्रतिमा है, चट्टानों सी अडिग सदा वो रहती ।
अपनी छाती से लिपटा कर सहलाने की मृदुता उसमें ।।
मैं हूँ तेरा अंश, तेरे तन मन की ही तो छाया हूँ मैं ।
बून्द अकिंचन को मूरत कर देने की है क्षमता तुझमें ।।
धन्यभाग मेरे, अपने अमृत से तूने सींचा मुझको ।
ऋण तेरा चुकता कर पाऊँ, कहाँ भला ये क्षमता मुझमें ।।
सच, आज जो कुछ भी हम हैं – हमारी माताओं के स्नेह और श्रम का ही परिणाम हैं | माँ से ही हमारी जड़ें मजबूत बनी हुई हैं – ऐसी कि बड़े से बड़े आँधी तूफ़ान भी हमें अपने लक्ष्य से – अपने आदर्शों से – अपने कर्तव्यों से डिगा नहीं सकते | करुणा-विश्वास-क्षमाशीलता की उदात्त भावनाएँ माँ से ही हमें मिली हैं | स्नेह, विश्वास, साहस और क्षमाशीलता की प्रतिमूर्ति संसार की सभी माताओं को श्रद्धापूर्वक नमन के साथ अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की अपने साथ साथ आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ…