प्रिय मित्रों, आगामी 30 तारीख़ को प्रकाश का पर्व है, तो सर्व प्रथम तो सभी मित्रों को पाँच दिन पहले से ही प्रकाश पर्व दीपावली के मंगलमय त्यौहार पर हार्दिक बधाई और ढेरों शुभकामनाएँ | दीपमालिका में प्रज्वलित प्रत्येक दीप की प्रत्येक किरण आपके जीवन में सुख, समृद्धि, स्नेह और सौभाग्य की स्वर्णिम आभा प्रसारित करे…. दिवाली पर्व है प्रकाश का – केवल दीयों का प्रकाश नहीं, मानव ह्रदय आलोकित हो जिससे ऐसे स्नेहरस में पगे दीप को प्रज्वलित करने का पर्व है यह… तो परम्परा का अनुसरण करते हुए गणेश-लक्ष्मी के आह्वाहन के साथ ही हम सब मिलकर दीप प्रज्वलित करेंगे आशा का – ताकि हरेक मन से निराशा का अन्धकार दूर हो… दीप प्रज्वलित करेंगे प्रेम का, अपनेपन का – ताकि नफरत और क्रोध का तमस कहीं जा तिरोहित हो….
अब एक निवेदन, मित्रों, इस बार की दीपावली कुछ विशेष है । हमारे प्रधान मन्त्री आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी ने भी आग्रह किया है कि हम सब सीमा पर तैनात अपनी फौज और सुरक्षाबलों को विशेष रूप से धन्यवाद देते हुए उन्हें दीपावली की शुभकामनाएँ भेजना न भूले । मेरा भी आप सब मित्रों से यही निवेदन है ।
कुछ बरसों से दीपावली पर पटाखों के धुंए और शोर से हवा और ध्वनि का प्रदूषण इतना बढ़ जाता है कि घरों के भीतर सब दरवाजे खिड़कियाँ बन्द करने के बाद भी धुआँ घुस ही आता है । हम सबके स्वास्थ्य के लिए यह बहुत नुकसान देने वाली स्थिति है । आइये इस बार इसे बदलें । इस बार संकल्प लें और बच्चों को भी प्रेरणा दें कि सरसों के तेल वाले मिट्टी के दिए जला कर ही हम दीपावली की अमा निशा को पूनम सी ज्योतित करेंगे और धुआँ उगलने वाली इस आतिशबाज़ी के धमाकों को जितना सम्भव होगा कम करेंगे। चीन में बने पटाखे और आतिशबाज़ी तो वास्तव में वातावरण में ज़हर घोल कर कई गुना प्रदूषण बढ़ा देती है जो फेफड़ों में और सांस की नली में सूजन पैदा करती है । तो आइये इस बार हम सब मिलकर एक नयी मिसाल पैदा करें और प्रदूषण मुक्त दीपावली मना कर अपनी सोसायटी, नगर और देश की आबोहवा को साफ़ रखें और ध्वनि प्रदूषण को कम से कम ।
शुभकामनाओं सहित, निवेदक:-
है प्रकाश का पर्व, धरा पर जगमग जगमग दीप जलाएँ |
और दीप की स्वर्ण ज्योति से हर घर आँगन को नहलाएँ ||
हरेक नयन में स्वप्न ख़ुशी का, और कंठ में राग दीप का |
नयी रोशनी लेकर आये अरुणोदय हर नयी भोर का ||
नए सुरों से सजे दिवाली, और स्नेह में पगे दिवाली |
दीन हीन सबके जीवन में स्नेहसरस हो जगे दिवाली ||
स्नेह बिना ये दीप व्यर्थ हैं, यदि इनमें ना हो दाहकता |
आओं मिलकर इनमें पहले स्नेह बढ़ाएं, फिर दहकाएँ ||
दीन हीन और निर्बल जितने भी प्राणी हैं इस धरती पर
उन सबके जीवन में स्नेहपगी बाती की लौ उकसाएँ ||
होती है दीवाली भू पर, जगर मगर दीपक जलते हैं |
जैसे इस नीले अम्बर में झिलमिल तारकदल खिलते हैं ||
ऐसे ही आओ हम मिलकर भू पर आशादीप जलाएँ |
मावस की ये कलुष निशा भी, पूनम सी ज्योतित हो जाये ||
एक बार पुनः प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ…