बेहद याद आते हो तुम
जब बरसती हैं सुख की रसभीनी बून्दें / मानस पर मेरे
जब होती है कोई उपलब्धि मुझे / या मेरे अपनों को
सोचती हूँ, काश तुम होते पास मेरे / सुनाती ख़ुशी से उछल कर तुम्हें
गिनाती अपनी सबकी उपलब्धियाँ
और तब तुम भी झूमते मेरे साथ ख़ुशी में / लगा लेते मुझे अपने गले
उत्साह से देते थपकियाँ मेरी पीठ पर
ताकि बढ़ती रहूँ मैं इसी तरह सदा / चरम लक्ष्य की ओर अपने |
बेहद याद आते हो तुम
जब पाती हूँ ख़ुद को एकाकी / भरी भीड़ में भी
जब नहीं सुनी जाती बात मेरी / नहीं समझी जाती सोच मेरी
जब छा जाते हैं दुःख के काले बादल / पर नहीं बरसता अमृत रस कहीं से भी
जब नहीं मिलता हल किसी समस्या का / नहीं मिलता उत्तर किसी प्रश्न का
तब ढूँढती हैं आँखें तुम्हें हर ओर
मिल जाओ तुम कहीं / और भाग कर छिप जाऊँ मैं / आँचल में तुम्हारे
समा जाऊँ गोद में तुम्हारी / बन कर फिर वही छोटी सी गुड़िया
और मेरे बालों में स्नेहसिक्त अँगुलियाँ फिराते तुम
प्यार से देते थपकियाँ मेरी पीठ पर / बोलो नेहपगी दृढ़ वाणी में
तुम्हारा कोई भी कष्ट नहीं है बड़ा / तुम्हारी संकल्पशक्ति और साहस से
तुम्हारी कोई भी समस्या / कोई भी प्रश्न नहीं है बड़ा / तुम्हारी योग्यता से
गिर पड़ने पर मेरे / हाथ पकड़ उठा लो मुझे / और बोलो
उठो, साहस के साथ जगाओ / अपने सुप्त पड़ चुके संकल्पों को
प्रयास करो कौशल, उत्साह और साहस के साथ / पाने का अपने लक्ष्य को
पीछे रह जायेंगे सारे अवसाद / सारी समस्याएँ
मिल जायेंगे तब उत्तर / सभी प्रश्नों के ।
पर नहीं आज तुम साथ मेरे
मात्र अहसास भर है होने का तुम्हारे / मेरी आत्मा में / मेरे अस्तित्व में
क्योंकि तुम्हीं से तो बना है अस्तित्व मेरा
सींचा जिसे तुमने अपने रक्त से / अपने नेह जल से / अपनी ममता से
अपने संकल्प से दृढ़ता से जुड़े रहेने को / दिया आधार जिसे तुमने अपने विश्वास का
सजाने को जिसका रूप दिए तुमने आभूषण / साहस और उत्साहों के
ऊँचा उड़ने को जिसे दिए तुमने पंख / आदर्श, नैतिकता और संकल्पों के
हाँ, तुम सदा साथ हो मेरे / मेरी यादों में / मेरी सोचों में / मेरे अस्तित्व में
अभिषिक्त करते हुए सदा अपने नेहमिश्रित आशीषों से…
फिर भी न जाने क्यों… बेहद याद आते हो तुम…