शून्य क्या है / एक अद्भुत अनुभूति
मुक्ति पानी है आवेगों से अपने
तो शून्य करना होगा सभी आवेगों को
पान करना है यदि अमृत का
तो शून्य करना होगा कषाय जल से पूर्ण अपने हृदय रूपी घट को
पाना है प्रकाश / तो शून्य करना होगा अन्धकार को
बढ़ना है आगे / तो निरन्तर रहना होगा गतिमान
और शून्य करना होगा भाव को सन्तुष्टि के
पाना है प्रेम / तो शून्य करना होगा मन को
स्वयं को आच्छादित करना होगा शून्य से
ताकि समा सके उसमें अथाह स्नेह
पाना है ज्ञान / तो शून्य होना होगा पूर्णज्ञान के अभिमान से
शून्य में है ध्वनि अद्भुत राग की
और पूर्णता में है समाप्ति उस राग की / जो पूर्ण होकर बन जाता है विराग
आरम्भ है शून्य / पूर्णता है अवसान
शून्य से आरम्भ है जीवन का / पूर्ण हुए तो अवसान है
समस्त प्रकृति का अवलम्ब / एकमात्र शून्य ही तो है
और अन्त में लय भी शून्य में ही हो जाना है
सृष्टि का आरम्भ गति और लय सब शून्य में ही है
तो निरन्तर गतिमान रखे वाले शून्य की उपेक्षा क्यों ?
गति पर विराम लगा देने वाले पूर्ण का मोह क्यों ?
चाहती हूँ, शून्य की इस अद्भुत अनुभूति को
आधार बनाकर जीवन का / सजा लूँ एक नवीन राग
जो बन जाए आधार मेरे मन की नीरवता का
और उसी नीरवता में खोकर / शून्य के पथ पर गतिमान रहकर
अन्त में विलीन हो जाऊँ उसी शून्य में
जहाँ अस्तित्व हो केवल सच्चिदानन्दस्वरूप निज आत्मा का
जो अजर अमर है / और आधार है जिसका
केवल शून्य…