दैनिक समाचार पत्र हो या सांध्यकालीन पटा पडा रहता है चोरी , डेकैती,हत्या और आत्महत्या के समाचारों से।
रही सही कसर बलात्कार, लिव इन में रहने के बाद शादी से इंकार ऐसी खबरें भी मन को विचलित कर देती है।छेड़छाड़ ,प्रेमी प्रेमिका की ऑनर किलिंग ,भीड़ तंत्र द्वारा घेर कर हत्या,ये सभी नकारात्मक खबरें व्यक्ति को सुबह से ही परेशान कर देती है।कोई दुर्घटना,पति पत्नी में विवाद के बाद तलाक,परीक्षा में सफलता न मिलना या कर्ज में डूबने पर आत्महत्या के समाचार सुबह सुबह चाय नाश्ते का स्वाद कसैला कर देते है।70 प्रतिशत ऐसी खबरों से,
20 प्रतिशत विज्ञापनों से भरे रहते है ये अखबार । मात्र 10 प्रतिशत सकारात्मक खबरें होती है ,जिन्हें हाईलाइट नहीं किया जाता।मारपीट ,धोखाधड़ी,लूटपाट,चैन स्नेचिंग और
मादक पदार्थों की पकड़ धकड़ ऐसी खबरों से कौन व्यक्ति प्रसन्न रह सकता है।किसी के प्लॉट या मकान पर कब्जा,किसी का फिरौती के लिए अपहरण,आतंकवादियों
द्वारा समूह हत्या,किशोर दोस्तों द्वारा दोस्त की हत्या,उधारी के पैसे मांगने आए व्यक्ति और किरायेदार द्वारा मकानमालिक कि हत्या हमारी बिगड़ी मानसिकता को दर्शाते ये समाचार हैं।क्या जरूरी है इन समाचारों को अखबार में स्थान देना।हम लोग क्यों सकारात्मक विचारों या समाचारों को नहीं पढ़ना चाहते? अख़बार में प्रकाशित कुछ ही विचरात्मक लेख आते है,उन्हें भी हम लोग रुचि से नहीं पढ़ते ।खेल समाचार भी राजनीति प्रेरित होते है।
आखिर क्या हो गया है इस देश के पाठकों को जो उन्हें वैचारिक धरातल से दूर कर रहा है। या फिर समाचार पत्रों की पाठकों के प्रति प्रतिबद्धता खत्म होते जा रही है।मुझे ऐसा लगता है कि न्यूज पेपर्स की आज के युग में प्रासंगिकता खत्म हो गई है।दिन भर टी. वी.पर न्यूज चक्र चलता रहता है,इससे भी लोगों की पढ़ने में रुचि धीरे धीरे विलोपित होती जा रही है।कुछ अखबार सरकार विरोधी तो कुछ सरकार परस्त हो अपनी स्वार्थी भूमिकाएं निभाते रहते है।मुझे याद है जब मै छोटा था तो घर में सुबह सुबह अखबार का बेसब्री से इंतजार होता था,और अखबार आते ही पढ़ने के लिए छोटों से बड़े बुजुर्गो तक सभी आतुर रहते थे।और पुरा अखबार पढ़ने में काफी वक़्त लगता था।आज मात्र 10 या 15 मिनटों में अखबार पढ़ लिया जाता है।दिनोदिन अखबार की महत्ता कम होती जा रही है।वक़्त आ गया है अखबार संपादकों,लेखकों और पाठकों के जागरूक होने का,यदि संपादक समाचारों की विश्वसनीयता बनाए रखे तथा अनावश्यक समाचारों का प्रकाशन बंद कर दे ।जन उपयोगी विज्ञापनों का समावेश करें तो निश्चित ही फिर से अखबारों की महत्ता कायम होगी।देश की युवा पीढ़ी डिप्रेशन का शिकार नहीं होगी।नैतिकता बढ़ेगी,भारतीय संस्कृति का पुन: जागरण होगा।समाचार पत्रों का देश के विकास में यह महत्वपूर्ण योगदान रहेगा।