ये आंखें मस्तानी है,उसे चंचल चितवन की दी गई उपमा है;
कभी झुकती पलकों के नीचे से झांकती दिखती ये उपमा है।
कभी मदहोशी का आलम बिखेरती,नशीली,
नखराली,शोख चंचल;
तो कभी निस्तब्ध,गंभीरता को ओढ़े अपने में खोई सी रहती यह निश्चल।
कभी अचानक से घबराई दिखती, या फिर ठगी ठगी दिखती;
आश्चर्य चकित हो जाती,या रहस्यमयी दिखाई देती है ये अछूती।
नृत्यांगना की तरह मटकती ,या फिर हौले हौले शर्माती सी लगती;
ये आंखें बड़ी डरावनी भी लगती,कभी क्रोध से लालिमा बिखेरती ।
आंखों ही आंखों में भाव प्रकट करती,विभिन्न भावों की मलिका जो ठहरी;
दु:ख के समय या फिर भावुकता के क्षणों में,झर झर झरती ये गहरी।
खुशी के मारे इन आंखों से बहती,अश्रु की तीव्र जलधारा;
कभी कभी केवल पनियल हो,दबा लेती भावनाओं की धारा।
मां की ममता हो या पिता की चिंता ,बखूबी प्रकट करती है ये नयना;
प्रेम की अलग अलग भाषा ,समय असमय समझा देती जैसे मृगनयना।
दुल्हन की ये कजरारी आंखे, दूल्हे के मन की थाह ले लेती;
वहीं बिदाई के वक़्त ये निरीह आंखें,माता पिता को अपने साथ ले आती।
माता पिता की पथराई आंखों में ,अपने जिगर के टुकड़े के ये पल हो जाते कैद;
आमंत्रित अतिथियों को धन्यवाद देते देते, रात्रि को अंधेरे में अश्रुबद्ध हो जाते ये नैन।