पुत्र वियोग में व्याकुल राजा दशरथ ने,आखिर तज दिए अपने प्राण ;
अपने पिता की आज्ञा का पालन करते, सरयू पार हुए
श्रीराम।
वन में पाषाण शिला को स्पर्श कर, किया ऋषि माता अहिल्या का उद्धार;
माता शबरी के प्रेम पूर्वक दिए झूठे बेरों से ,पेट भरके
किया नहीं इनकार।
केवट कितना बड़ भागी, जिसकी नौका पे सवार हो किया
नदिया को पार;
जंगल में पर्ण कुटिया में रह कर ,पशु पक्षियों के बीच रह कर प्रभु ने किया उपकार।
माता सीता को स्वर्ण मृग की तृष्णा ने घेरा, निकल पड़े उसे पकड़ने श्रीराम;
मृग रूपी मारीच राक्षस ने बाण लगते ही,मुख से निकाला उदगार श्रीराम श्रीराम।
चले लक्ष्मण भ्राता को तलाशने , पर्ण कुटिया के चहुंओर खींच लक्ष्मण रेखा,
रावण ने मौका देख भेष साधु का धर,हर लिया माता सीता को देकर धोखा।
चल पड़ा वायु यान आकाश में लंका की ओर,जटायु ने माता को रोते देखा;
पीछा कर रोका दुष्ट रावण को ,दुष्ट ने पंख काट कर जटायु का विरोध रोका।
राम लक्ष्मण माता सिया को ढूंढते ढूंढते जा मिले घायल
जटायु से;
रावण के यान की दिशा बता कर ,वीर जटायु ने प्राण त्यागे प्रभु के चरणों में।
बाली के प्राण हर किया न्याय ,वानर राज सुग्रीव के साथ;
ले कर साथ वानर सेना ,चल पड़े हनुमान अपने प्रभु के साथ।