रेत पर उकेरी गई आकृति,मेरा वजूद इतना सा ही कुछ समय का;
कलाकार ने उकेरा बड़ी शिद्दत से,चित्रण कर दिया अपनी भावनाओं का।
मैं बनी इतनी सुन्दर कि, मुझे मिटाने के लिए खड़े तैयार है दुश्मन;
चलती हवा और लहरें पानी की,करती इंतजार कब हम करें इसे तमाम।
विज्ञापनों में लगी आकृतियां ईश्या करती,क्योंकि आसपास मेरे भीड़ जो होती;
लोगों की भीड़ करती मेरी तारीफ़,कलाकार को देती संतुष्टि अपनी बनायी जो कृति।
रेत पे उकेरी गई आकृति हूं,मेरी जिंदगी है बस क्षणिक सी;
कब पानी की लहरें समेट ले मुझे,या फिर हवा बना ले सहेली सी।
कुछ लोग मुझे कर लेते कैद अपने कैमरे में,तो मैं हो जाती सभी की थोड़े समय में;
लेकिन असलियत तो यह है ,मेरी जीवन की कहानी तो मिट जाती चंद लम्हों में।
धन्य है वह कलाकार जो बार बार ,परिश्रम कर उकेरता है मुझे;
कई बार मिटने के बाद भी,इस रेत पर एक बार फिर नया जीवन देता है मुझे।