बदल गयी है ,इंसान की अब अपनी फितरत;
बदल रहा है,इंसान अब पैमाने ए कुदरत।
जीने की परिभाषा,विकास की अभिलाषा;
सब कुछ बदल रहा,पूरी करने अपनी लालसा।
प्रकृति को छेड़ , छीन पशु पक्षियों का आसरा;
स्वार्थ के अतिरेक,जंगल पे मंडरा इंसानी खतरा।
अपनी मर्यादा लांघ,कई देशों का किया निर्माण;
अपने लिए कई द्वीप सजाएं,जानवरों का हुआ प्रयाण।
खुद ही फंस गया चक्रव्यूह में,जो उसने खुद है रचा;
कोरोना वायरस के कारण,घरों में कैद हो खुद है बचा।
आज इंसान ने ,मानवीयता पर खड़ा किया है प्रश्नचिन्ह ;
संसार को जीतने के लिए,खड़ा किया है वायरस जिन्न।
अपने ही पैरों पे मार कुल्हाड़ी,शुरू किया खुद का विनाश;
बेमानी बेमतलब रह जाएगा ,सभ्यताओं का ये विकास।
प्रेम,सहयोग,मित्रता,हो गयी है इंसानी स्वार्थ प्रेरित भावना;
झूठ,बेईमानी,और शत्रुता, घर कर गयी इंसान में ये दुर्भावना।