रामेश्वरम पहुंच चिंतित हुए लक्ष्मण,कैसे करेंगे यह सागर पार;
क्रोधित लक्ष्मण धनुष ताने चले,करने छोटा सागर का आकार;
प्रभु राम ने शालीनता से कहा,सागर को करने के लिए विचार।
हाथ जोड़ विनम्रता से सागर ने,किया प्रभु राम को प्रणाम;
किया कम अपने आवेग को,दिया अपनी गति को विराम।
नल और नील के साथ मिल कर ,वानरों ने किया निर्मित राम नाम का पाषाण पाथ;
हनुमान गए अशोक वाटिका,दिया माता सिया को
संदेश मुद्रिका के साथ।
छोटा रूप धारण कर ,पूंछ पे आग लगाते ही कर लिया रूप विशाल,
सारी लंका जला कर ,पूंछ लहरा लहरा कर राक्षसों में मचा कोलाहल।
लंकापति के भ्राता विभीषण पहुंचे प्रभु राम के पास,
छोड़ अपनी लंका;
शिवलिंग स्थापित कर की युद्ध की घोषणा,अब हारने की ना थी कोई आशंका।
छिड़ गया युद्ध राक्षसों और वानरों में,कौंध गए तीनों लोक
सबने ये देखा;
हुए मूर्छित लक्ष्मण ,हनुमान लाए संजीवनी बूटी सहित पर्वत को
तोड़ने उनकी मूर्छा।
अन्त में प्रभु राम ने तीर चलाया रावण की नाभि पे,
गिर पड़ा वीर रावण धरा पर;
श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा ,सीख लो रावण की विद्वता से
रख शीश उनके चरणों पर।
चले राम लक्ष्मण सीता हनुमान सह अयोध्या, सौंप विभीषण को उनकी स्वर्ण लंका;
खुशियों की लहर दौड़ पड़ी आयोध्या में,दिए जल उठे चारों ओर प्रभु राम जीत के आए लंका।