ये खामोशियां,ये खामोशियां,बहुत कुछ कह गई ;
ये खामोशियां।
गुस्से के बाद की खामोशियां ,क्या क्या कहती है;
कोई जान ना पाता,क्या कह रही है ये खामोशियां।
दो अनजान मिलें तो कुछ कहती है खामोशियां;
बहुत कुछ आंखें बयां करती है,ये गुस्ताखियां।
दो प्रेमी अगर मिले तो ,अलग ही मतलब देती हैं;
केवल चेहरे की लाली बता देती है,ये खामोशियां।
मन का अन्तर्द्वन्द छिपा देती है,क्या क्या कह जाती है;
चुपके से अपना दर्द लिख जाती है,ये खामोशियां।
माता पिता की डांट के बाद,परीक्षा में असफलता के बाद;
अपनों से झगड़े के बाद,मित्रों से अनबन के बाद;
क्या क्या नहीं कह देती ,ये वीरान खामोशियां।
बहुत कुछ छिपा लेती है,बहुत कुछ अपने में समेट लेती है;
किसी का प्रेम,किसी का दर्द,किसी की नफ़रत;
किसी का दिया धोखा, किसी की झूठी शराफत ;
एक छोटी सी मेमोरी चिप में ,कैद कर लेती है ये खामोशियां।
कब बिखर जाएं,कब बिफर जाएं,कब घातक हो जाएं;
कह ना सके कोई इनका चरित्र ,है ये बड़ी ही विचित्र;
बहुत कुछ कह देती है या फिर बहुत कुछ छिपा लेती है!
आखिर है बड़ी बेमतलब लोगों के लिए ,
अलग अलग है इसका मतलब अपने स्वयं के लिए;
आखिर शुरू कर ही देती है ये लोगो मै सरगोशियां ।
ये खामोशियां,ये खामोशियां,ये खामोशियां।