प्राचीन शिक्षा पद्धति का विलोपन, नवीन शिक्षा पद्धति का आगमन;
ऋषि मुनियों द्वारा प्रदत्त शिक्षा ,गुरुकुल पद्धति वाली शिक्षा को नमन;
आश्रम में रह कर गुरु और गुरुमाता की सेवा करते हुए शिष्यों का होता अध्ययन;
किताबी ज्ञान के साथ साथ वास्तव में मिलता था व्यावहारिक ज्ञान अध्ययन।
सदाचार,ईमानदारी,नैतिकता,सेवा और समर्पण , इन सभी का था समावेश;
साथ ही होता था विज्ञान, गणित ,भाषा और समाज शास्त्र का भी समावेश।
स्वरक्षा एवम् दुष्टों के संहार के लिए,होता अस्त्र एवं शस्त्र संचालन का ज्ञान;
सभी विषयों का वास्तविक होता था व्यावहारिक एवम् कार्यानुभव ज्ञान।
अंकों के लिए,पर्सेंटाइल के लिए,मेरिट हेतु कोई होडजोड नहीं और ना ही कोई दबाव;
शुद्ध प्राकृतिक वातावरण में,जंगल में,पेड़ों की छांह में,नदी के किनारे होता शिक्षा प्रवाह।
ना कोई आम और ना कोई खास, सभी को मिलता था एक समान आवश्यक ज्ञान;
तैयार होती थी ऐसी पीढ़ी , जो राष्ट्र प्रेम,मातृ पितृ प्रेम और गुरुओं का करती थी सम्मान।
धन की ना थी गुरुओं को कोई लालसा,बस विद्याध्ययन के बाद सभ्यता निर्वाण की थी आकांक्षा;
शिष्यों को देनी होती बस एक गुरुदक्षिना,आने वाली पीढ़ी को प्राप्त ज्ञान समर्पित करने की सदिच्छा ।